कोरोना महामारी (Coronavirus) की दहशत लोगों के सिर चढ़कर बोल रही है। अब नई बीमारी ब्लैक फंगस (Black Fungus) और सफेद फंगस (White Fungus) भी सामने आ गई है। इससे पूरा देश घबराया हुआ है। कोरोना महामारी (Coronavirus) को रोकने के लिए दुनिया डेढ़ साल से लगी है। चिकित्सक दिन-रात एक कर कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहे हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान कर महामारी से निपटने के उपाय तलाश रहे हैं। अब तक कई देशों ने वैक्सीन का विकास किया गया है और अब कोरोना रोकने का सारा दारोमदार और सारी उम्मीदें वैक्सीन पर आकर टिक गयी हैं।
कोरोना (Coronavirus) से पीड़ित मानव समाज दिन-रात टकटकी लगाये है कि कोई वैज्ञानिक उपाय काम कर जाये और महामारी के इस भयानक संकट से मानवता को मुक्ति मिले। कोरोना दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी है। इसने अब तक 16 करोड़ से अधिक लोगों को शिकार बनाया है, करीब 35 लाख जानें ले चुका है। भारत में ही ढाई करोड़ से अधिक संक्रमित हो चुके हैं और करीब तीन लाख मौतें दर्ज की गयी हैं। संक्रमण के जो केस दर्ज नहीं हुए और जो मौतें सरकार के आंकड़ों में नहीं हैं उनकी संख्या निश्चित तौर पर आंकड़ों से अधिक है।
पूरी दुनिया कोरोना का संत्रास झेल रही है, करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गये हैं, लाखों लोगों ने अवसाद में आकर जान दे दी, 12 करोड़ से अधिक रोजगार चले गये और सपनों के लाखों सुमन खिलने से पहले ही मुरझा गये। इस मानवीय त्रासदी के बीच जब लोग कोरोना को भगाने के लिए हवन करते हैं, गोमूत्र से कोरोना का शर्तिया इलाज करते हैं, कोरोना माई की पूजा कर मुक्ति की याचना करते हैं, तब ऐसे अंध विश्वास दरअसल संकट को जटिल बना देते हैं। अगर हम इतिहास पर गौर करें तो महामारी चाहे जो आयी हो, उसके प्रसार में धर्मभीरुओं ने अहम भूमिका निभायी है।
तेरहवीं शताब्दी में जब काली मौतों से यूरोप की एक तिहाई आबादी कम हो गयी थी तब भी महामारी के प्रसार में धर्मभीरुओं ने अहम भूमिका निभायी थी। बीते दो वर्षों से कोरोना ने पूरी दुनिया के नाक में दम कर रखा है, लेकिन इस महामारी के प्रसार में धर्मभीरू या कहें अंधविश्वासी लोग अहम कड़ी साबित हो रहे हैं। देश के कई राज्यों में कोरोना गांव-गांव तक पहुंच गया है, जहां न जांच है, न इलाज और न ही बचाव के उपाय अपनाये जा रहे हैं, लेकिन अंधविश्वास में पीछे नहीं हैं।
बकायदा टोलियों में लोग निकलकर कोरोना भगाने का हवन कर रहे हैं, कोरोना माई की पूजा हो रही है और गोमूत्र सहित न जाने कितने उपाय कोरोना के शर्तिया इलाज के तौर पर बताये जा रहे हैं। समाज में वैज्ञानिक ज्ञान का बहुत महत्व है। संविधान ने भी इसे स्वीकार किया है, लेकिन जब एक सांसद गोमूत्र से कोरोना को भगाने की बात करतीं है तो इससे न सिर्फ महामारी का संकट गहराता है बल्कि उन लाखों लोगों का मनोबल भी टूटता है जो कोरोना को हराने के लिए बीते सवा साल से जान जोखिम में डालकर दिन-रात काम कर रहे हैं। महामारी की इस त्रासदी में लोगों को अंधविश्वास से बचाने की जरूरत है। सरकार को कोरोना से बचाव, जांच, इलाज आदि को व्यापक तौर पर प्रचारित-प्रसारित करने के साथ ही ऐसे लोगों पर भी सख्त कार्रवाई करनी चाहिए तो अंधविश्वास फैलाकर संकट को और जटिल बना रहे हैं। सवाल यह है कि इस महामारी को न तो हल्के में लेने की जरूरत है और न ही इसके उपचार में किसी भी तरह की कोताही बरतने की जरूरत है। हमारी जरा सी लापरवाही हमें गंभीर खतरे का भाजन बना सकती है।