सियाराम पांडेय ‘शांत’
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। यह और बात है कि कोरोना महामारी के चलते पंचायत चुनाव तय समय पर नहीं हो पाए और ग्रामप्रधानों के वित्तीय अधिकार अधिकारियों के हाथ में चले गए। उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। कदाचित ऐसा न होता तो स्थिति ज्यादा मुुफीद होती लेकिन जब जागे तभी सवेरा। अदालत के निर्देश के बाद सक्रिय हुई योगी आदित्यनाथ सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण नियमावली जारी कर दी है।
चक्रानुक्रम यानी रोटेशन के तहत आरक्षण का लाभ पंचायतों को तो होगा ही, आरक्षण से वंचित तबका भी अब ग्राम प्रधान, ब्लाॅक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में जोर आजमा सकेगा। एक ही जाति के व्यक्ति के पास अगर पंचायती हो तो बाकी जाति के लोगों में असंतोष का भाव पैदा होता है। यह स्थिति पंचायत के विकास में रोड़े अटकाती है। सरकार ने इस बावत न केवल समझा है बल्कि असंतोष की जड़ पर ही प्रहार करने की योजना बनाई है। इससे गांव और शहर के बीच भी संतुलन बनेगा।
आरक्षण नियमावली पर कुछ राजनीतिक दलों को असंतोष हो सकता है, उन्हें नाराजगी हो सकती है लेकिन इस दिशा में प्रयास तो बहुत पहले ही हो जाने चाहिए थे लेकिन देर आयद- दुरुस्त आयद की राीति नीति के तहत जिस तरह योगी सरकार आगे बढ़ रही है। उससे प्रदेश में खासकर पंचायती क्षेत्रों चाहे वह गांव हो, ब्लॅाक हो, नगर होे या जिला,व्यवस्था बदलेगी और काम के स्वरूप में भी नवीनता देखने को मिलेगी। बहुत सारे गांव, ब्लाॅक, नगर व जिला पंचायतों के वार्ड ऐसे थे जिनका कभी आरक्षण हुआ ही नहीं। एक ही परिवार के हाथ में प्रधानी और पंचायती का दायित्व रहा।
पंचायतों के इस वंशवादी चरित्र को तोड़ना मौजूदा दौर की सबसे बड़ी जरूरत थी। सरकार ने इस जरूरत को समझा ही नहीं, बल्कि पंचायतों में सुधारों के दृष्टिगत उसमें सुधार-परिष्कार की दिशा में बढ़े, इसके लिए सरकार को साधुवाद दिया जाना चाहिए। सामान्य निर्वाचन वर्ष 1995, 2000, 2010 और वर्ष 2015 में अनुसूचित जनजातियों को आवंटित जिला पंचायतें अनुसूचित जनजातियों को आवंटित नहीं की जाएगी और अनुसूचित जातियों को आवंटित जिला पंचायतें अनुसूचित जातियों को आवंटित नहीं की जाएंगी। इसी तरह पिछड़े वर्गों को आवंटित जिला पंचायतें पिछड़े वर्गों को आवंटित नहीं की जाएंगी। इससे मोनोपोली टूटेगी। किसी जाति विशेष का वर्चस्व टूटेगा। बदलाव होगा तो इससे विकास कार्यों में कुछ नयापन भी देखने को मिलेगा।
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चक्रानुक्रम में आरक्षण करने की नियमावली के तहत पिछले पांच चुनावों का रिकॉर्ड देखा जाएगा। जिला पंचायतों में 3051 वार्ड बनाए गए हैं। इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और महिला के क्रम में गांवों का आरक्षण होगा। जो पद पहले आरक्षित नहीं था, उन्हें वरीयता दी जाएगी। इसके लिए 20 फरवरी तक प्रस्ताव तैयार होगा । किसी को कोई आपत्ति होगी तो वह 2 से 8 मार्च तक आपत्ति दे सकेगा।
सरकार का प्रयास है कि चक्रानुक्रम आरक्षण प्रणाली के तहत एक भी पंचायत ऐसी न हो जो जातिगत आरक्षण से वंचित रह जाए। मतलब यह कि हर जाति के लोगों को इस बार चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। किसी के साथ कोई भेदभाव न हो, इस दिशा में उठाया गया यह कदम बेहद सराहनीय है। जब से उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहे हैं तब से लेकर आज तक सूबे में ऐाी अनेक पंचायतें हैं जिनमें कभी ओबीसी अथवा एससी के लिए आरक्षण हुआ ही नहीं।
इस नई व्यवस्था के तहत अब उन पंचायतों में भी आरक्षण की व्यवस्था की जाएगी। खास बात यह है कि वर्ष 1995 से अब तक के 5 चुनावों में जो पंचायतें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होती रहीं और ओबीसी के आरक्षण से वंचित रह गई, वहां ओबीसी का आरक्षण होगा लेकिन इन सबके बीच सबसे ज्यादा निगाहें जिला पंचायत परिषद अध्यक्ष पद के आरक्षण को लेकर लगी हुई है। संप्रति उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में एक साथ पंचायतों के वार्डों के आरक्षण की नीति लागू हो रही है।
वर्ष 1995 में पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था और उसमें आरक्षण के प्रावधान लागू किए गए थे लेकिन तब से अब तक हुए पांच पंचायत चुनावों में जिले के कई ग्राम पंचायतें ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत व जिला पंचायत अध्यक्ष के पद आरक्षित होने से वंचित रह गए। ऐसे में इस बार जिला पंचायत परिषद के सभी 20 वार्डों, ग्राम प्रधान के 244 , क्षेत्र पंचायत के 505 और वार्ड सदस्य के 3322 पदों के आरक्षण में चक्रानुक्रम फार्मूला अपनाया जा रहा है। अखिलेश सरकार में वर्ष 2015 में ग्राम पंचायतों का आरक्षण शून्य मानकर नए सिरे से आरक्षण लागू किया गया था। क्षेत्र व जिला पंचायतों में वर्ष 1995 के आरक्षण को आधार मानकर सीटों का आरक्षण चक्रानुक्रम से कराया गया था।
योगी सरकार आरक्षण चक्र को शून्य करने के पक्ष में हरगिज नहीं है। पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है, जिसे वरीयता क्रम के अनुसार लागू किया जाना है। यानि पहला नंबर अनुसूचित जाति वर्ग की महिला का होगा। अनुसूचित वर्ग की कुल आरक्षित 21 प्रतिशत सीटों में से एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसी तरह पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित 27 प्रतिशत सीटों में भी पहली वरीयता महिलाओं को दी जाएगी। अनारक्षित सीटों पर सामान्य वर्ग से लेकर किसी भी जाति का व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। आबादी के आधार पर तय होगा आरक्षण रू ग्राम प्रधाान पद का आरक्षण आबादी के आधार पर तय किया जाता है।
आरक्षित वर्ग की जनसंख्या अधिक होने पर ब्लाक को केंद्र मानकर ग्राम प्रधान का आरक्षण निर्धारित किया जाता है। क्षेत्र पंचायत का आरक्षण जिले की आबादी के आधार पर किया जाता है। इसी क्रम में जिला पंचायत का आरक्षण प्रदेश स्तर पर तय होगा। यह एक अच्छी पहल है और सका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की भावना के तहत ऐसा किया जा रहा है। चुनाव में सभी जाति-वर्ग को मौका मिले और पंचायती सरकार किसी एक परिवार या वंशवाद की शिकार न हो जाए, इस लिहाज से भी ऐसा करना जरूरी हो गया है। चुनाव देर से हों, कोई बात नहीं लेकिन अगर सबके विकास को लक्ष्य रखाकर अगर कोई योजना बनती है तो उसका असर भी दिखता है।
योगी सरकार के इस निर्णय का भी असर दिखेगा, इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है। किसानों के आंदोलन के बीच इस तरह का चक्रानुक्रम आरक्षणसरकार के प्रति पंचायतों पर वर्षों से कुंडली मारे बैठे कुछ लोगों की नाराजगी का सबब भी बन सकता है लेकिन काम तो वही करने चाहिए जिसमें सबका हित हो। सरकार तो सबकी होती है तो उसके कामकाज में भी वह बात झलकनी चाहिए। मौजूदा आरक्षण प्रणाली इसी ओर इंगित करती है।