सावन (Sawan) के इस महीने में भक्तगण शिव मंदिरों (Shiva Temple) में दर्शन करने पहुंच रहे हैं। देशभर में भगवान शिव के (Shiva) हजारों मंदिर हैं और सभी की अपनी अलग आस्था और कहानी हैं। लेकिन महादेव के कुछ मंदिर ऐसे हैं जो अपनेआप में ही अनोखी पहचान रखते हैं।
आज इस कड़ी में हम बात करने जा रहे हैं महादेव (Mahadev) के ऐसे इकलौते मंदिर की जहां उनके साथ उनकी पुत्री अशोकासुंदरी (Ashokasundari) भी विराजमान हैं। यह मंदिर राजस्थान के कोटा के कंसुआ में हैं। यहां भगवान शिव (Shiva) के साथ माता पार्वती और मां गंगा ही नहीं, उनके दोनों पुत्र भगवान गणेश और कार्तिकेय के साथ पुत्री अशोकासुंदरी भी विराजमान हैं।
आश्रम में शिवगण, नंदी और भैरव भी विराजमान हैं। मान्यता है कि मंदिर के प्रांगण में स्थापित जल कुंड में स्नान करने से समस्त कष्टों का अंत हो जाता है।
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इस मंदिर की दूसरी सबसे बड़ी खासियत यह है कि भगवान शिव अपने भक्तों को माता पार्वती जितना स्नेह देते हैं। यहां भोलेनाथ माता पार्वती के साथ नंदी पर विराजमान हैं। चंवर ढुला रही मां पार्वती भगवान शिव को निहार रही हैं और प्रेम के वशीभूत भगवान भी उन्हें देख रहे हैं, लेकिन सामने कोई भक्त उनके चरणों में ढोक देता है, उस पर भी उनकी उतनी ही दृष्टि रहती है।
मंदिर में तीन चतुर्भुजी शिवलिंग भी स्थापित हैं, जो अपनेआप में अनूठे हैं। इस मंदिर की स्थापना इस तरह की गई है कि सूर्य जब भी उत्तरायण और दक्षिणायन होता है, दोनों बार एक-एक महीने के लिए उनकी पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव की प्रतिमा के चरणों में पड़ती है।
कर्णेश्वर धाम में मौर्य शासकों की अगाध श्रद्धा थी। 738 ईस्वी में आश्रम की हालत जीर्ण-शीर्ण होने पर राजा धवल ने अपने सेनापति शिवगण को मंदिर का जीर्णोद्धार कराने का आदेश दिया। काम पूरा होने पर शिवगण ने मंदिर की दीवार पर दो शिलालेख भी लगवाए। प्राकृत और आदिसंस्कृत भाषा में लिखे इन शिलालेखों में मंदिर की महत्ता का उल्लेख किया गया है।