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कांग्रेस का हाथ मुख्तार के साथ

कांग्रेस का हाथ मुख्तार के साथ

कांग्रेस का हाथ मुख्तार के साथ

पूर्वांचल के माफिया सरगना मुख्तार अंसारी अब उत्तर प्रदेश पुलिस की कस्टडी में है। उसे कड़ी सुरक्षा के बीच बांदा लाया जा रहा है। पंजाब की कांग्रेस सरकार ने उसे उत्तर प्रदेश पुलिस को न सौंपने की तिकड़में तो खूब कीं लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने भी हार नहीं मानी। सर्वोच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया और अब मुख्तार अंसारी जिसका गुंडाराज कभी पूर्वांचल में खून बनकर बरसता था, आज एंबुलेंस में असहाय सा लेटा नजर आ रहा है और अपने पूर्व कर्मों को कोस रहा है। उसे पता चल गया है कि व्यक्ति नहीं , समय बलवान हुआ करता है।

इसका अहसास तो खैर उसे तभी हो गया था जब बागपत जेज में उसके सहयोगी मुन्ना बजरंगी की हत्या हो गई थी। उस समय मुख्तार उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में था और काफी डर रहा था कि मुन्ना बजरंगी की तरह ही कहीं, उसकी भी हत्या न हो जाए। जो भी विपक्षी दल विकास दुबे की तरह मुख्तार का वाहन पलटने और उसकी जान जाने की आशंका जाहिर कर रहे हैं, उन्हें आजाद भारत के इतिहास पर गौर करना चाहिए। आजाद भारत में एक भी अपराधी जन प्रतिनिधि की पुलिस मुठभेड़ में जान नहीं गई है। मुख्तार से भी बड़े अपराधी राजनीति का लबादा ओढ़ने के बाद पूरी तरह सुरक्षित हैं, इसलिए मुख्तार अंसारी के साथ अगर कुछ ऐसा होता है जिसकी संभावना नगण्य है, वह किसी आश्चर्य से कम नहीं होगा।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही कह चुके थे कि मुख्तार के पापों का घड़ा भर चुका है और उसके पापों का अंत निकट हैं। ऐसे में उसे सहारा मिला मोहाली पुलिस से,जिसने एक व्यापारी से दस करोड़ की कथित रंगदारी
मांगने के मामले में मुख्तार अंसारी की कोर्ट से रिमांड मांग ली और तब से मुख्तार अंसारी रोपड़ जेल में बंद था और अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा था। पंजाब सरकार ने तो इस मामले में अदालत में भी खूब तर्क दिये लेकिन उसकी एक न चली और अंतत: उसे मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश पुलिस के हवाले करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पंजाब पुलिस का एक कमांडो दस्ता बांदा तक के लिए भेज दिया जो यह सुनिश्चित करेगा कि वह सुरक्षित जेल में पहुंच गया या नहीं। कांग्रेस का हाथ आम जन के साथ हो या न हो, लेकिन एक कुख्यात अपराधी के साथ जरूर है, यह बात पूरी तरह अयां हो चुकी है।

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एक दौर था जब पूर्वांचल में मुख्तार गैंग को गुंडा टैक्स या हफ्ता न देने की सोचने में भी लोग दहशत में आ जाया करते थे। आज उसी मुख्तार की सुरक्षा के लिए उसकी पत्नी राष्ट्रपति से गुहार लगा रही हैं। उनके सांसद भाई अफजाल अंसारी यह कह रहे हैं कि बांदा जेल में उनके भाई के साथ छल या षड़यंत्र हो सकता है। जो सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव की इच्छा के बाद भी मुख्तार अंसारी को सपा का टिकट न देने पर अड़ गए थे, सोशल मीडिया पर चर्चा है, पता नहीं, इस चर्चा का आधार क्या है कि गूगल मैप के जरिये अखिलेश यादव रोपड़ से लेकर बांदा तक की मुख्तार की यात्रा को लाइव देखेंगे। मुख्तार के प्रति अचानक उपजे इस व्यामोह की वजह क्या हो सकती है,यह तो वही जानें लेकिन यह यात्रा कई मायनों में देश— दुनिया की सुर्खियां बनी हुई है।

इसमें शक नहीं कि मुख्तार अंसार का पारिवारिक राजनीतिक आधार है। उसके पिता अगर कम्युनिस्ट लीडर रहे हैं तो दादा मुख्तार अहमद अंसारी 1926—27 में अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। नाना महावीर चक्र विजेता रहे तो चाचा हामिद अंसारी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति और देश के उप-राष्ट्रपति रहे हैं। इतनी गौरवशाली पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद मुख्तार का जुर्म के रास्ते पर चलना और 40 से ज्यादा मामलों में वांछित होना यह बताता है कि उनकी राह भटक गई और इसके पीछे उनका अतिशय लोभ ही प्रमुख रहा।

वह पिछले 13 सालों से जेल में बंद है लेकिन जेल की दीवारों में भी उसे भय लगता है। उस पर जितने केस हैं, उससे अधिक तो उसके दुश्मन हैं और यह दुश्मन भी वे हैं जो उसने खुद पैदा किए हैं। अगर कांग्रेस अपने अध्यक्ष के पौत्र को बचा रही है तो उसे साधुवाद दिया जाना चाहिए लेकिन कांग्रेस में ही ऐसे कई उदाहरण हैं जो कांग्रेस की कथनी और करनी पर सवाल भी खड़ा करते हैं। यूपी सरकार को भी मुख्तार की सुरक्षा की चिंता है तभी तो वह उनकी जेल बदलती रही है।

अतीत में जाएं तो वर्ष 1988 में मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर मुख्‍तार अंसारी ने सच्चिदानंद राय की हत्या कर दी थी। इसी बीच त्रिभुवन सिंह के कांस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की हत्या वाराणसी में  हुई, उसमें मुख्‍तार का नाम एक बार फिर सामने आया था। वर्ष 1991 में चंदौली में मुख्‍तार अंसारी को गिरफ्तार किया गया था लेकिन रास्ते में दो पुलिसवालों को गोली मारकर वह फरार हो  गया था। इसके बाद उसने  रेलवे के ठेके, शराब के ठेके, कोयले के काले कारोबार को शहर से बाहर रहकर संचालित करना शुरू कर दिया था। वर्ष 1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमला मामले में भी उसका नाम सुर्खियों में आया था। वर्ष 1997 में कोयला व्यापारी रुंगटा के अपहरण के बाद मुख्‍तार अंसारी का नाम जरायम की दुनिया में और मजबूती से लिया जाने लगा। यह और बात है कि  उसी दौर में  माफिया डॉन बृजेश सिंह का भी उदय हो चुका था।

 

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वाराणसी, मऊ, गाजीपुर और जौनपुर में 2010 तक अपराध माफिया पूरी राजनीति पर हावी थे। इसके दो ध्रुव थे मुख्तार अंसारी तो दूसरे बृजेश सिंह। फिरौती, रंगदारी, किडनैपिंग और करोड़ों की ठेकेदारी को लेकर मुख्‍तार और बृजेश सिंह के बीच अक्सर गैंगवार होती रहती थी। अपराध की दुनिया पर फतह के बाद मुख्तार जिस तरह राजनीति की ओर उन्मुख हो रहे थे, उसी तरह बृजेश जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बनना चाहते थे । वर्ष 2002 में बृजेश सिंह और मुख्‍तार अंसारी के बीच हुए गैंगवार में मुख्‍तार के तीन लोग मारे गए थे। बृजेश सिंह भी जख्मी हो गए थे। उनके मरने तक की खबर आई, लेकिन कई महीनों तक किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई कि बृजेश सिंह जिन्दा है।

माफिया डॉन बृजेश सिंह की गैरहाजिरी में बाहुबली मुख़्तार अंसारी का वर्चस्व बढ़ता गया। आपराधिक छवि मजबूत होने के साथ ही अंसारी परिवार की राजनीतिक छवि कमजोर होने लगी। वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में कृष्णानंद राय से मुख्तार के भाई अफजल अंसारी हार गए। इसमें कृष्णानंद राय को बृजेश सिंह का भी समर्थन मिला था। इसी बीच मुख्तार अंसारी ने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी की मदद से विधायक कृष्णानंद राय की उनके पांच साथियों के साथ हत्‍या करा दी थी।  इसके बाद हर तरफ दंगे भड़क उठे। वर्ष 2005 में जब मऊ में दंगे भड़काने का आरोप भी  मुख्तार अंसारी पर लगा था। इन दंगों के बाद वर्ष 2006 में तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने मुख्तार अंसारी को खुली चुनौती दी कि मऊ आकर पीड़ितों को इंसाफ दिलाएंगे, लेकिन उन्हें मऊ में दोहरीघाट में रोक दिया गया था।

यह और बात है कि वर्ष 2008 में योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ जा रहे थे,तब उनके काफिले पर हमला  किया गया। उनकी गाड़ी में तोड़फोड़ और आगजनी की कोशिश की गई थी। उस वक्त योगी आदित्यनाथ बाल-बाल बचे थे । हमले से बचने के बाद योगी ने मुख्तार अंसारी को चेतावनी दी थी। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने राज्य में अपराधियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। मुख्तार के अवैध निर्माण ध्वस्त कर दिए गए। कई बेनामी संपत्तियां जब्त कर ली गईं।  परिवार के लोगों पर भी कानूनी शिकंजा कसा  जा रहा है। गत 2 वर्ष में यूपी पुलिस 8 बार मुख्तार को लेने पंजाब गई थी लेकिन हर बार सेहत, सुरक्षा और कोरोना का कारण बताकर पंजाब पुलिस ने उसे सौंपने से इनकार कर दिया था। यह भी सच है कि कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर के बाद ही मुख्तार अंसारी डरे हुए हैं।

उन्होंने पंजाब सरकार को पत्र लिखकर आशंका जताई  थी कि विकास दुबे की तरह  मेरी भी जान जा सकती है। 8 जनवरी 2019 को पंजाब के मोहाली के एक बड़े बिल्डर की शिकायत पर पंजाब पुलिस ने 10 करोड़ की फिरौती मांगने का केस मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज किया था। 12 जनवरी को प्रोडक्शन वारंट हासिल करने के लिए पुलिस कोर्ट पहुंची थी और 21 जनवरी 2019 को पुलिस मुख्तार को प्रोडक्शन वारंट पर यूपी से मोहाली ले आई थी। 22 जनवरी 2019 को अंसारी को मोहाली कोर्ट में पेश किया था। एक दिन का रिमांड मिला।  24 जनवरी को न्यायिक हिरासत में अंसारी को रोपड़ जेल भेज दिया गया। तबसे  वह इसी जेल में बंद था।

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मुख्तार अंसारी मऊ निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा के सदस्य के रूप में रिकॉर्ड पांच बार विधायक चुने गए हैं। भाजपा के दिग्गज नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी से वाराणसी लोकसभा सीट पर मुख्तार अंसारी कम मतों के अंतर से ही पराजित हुए थे। इनके भाई अफजाल 4 बार कम्युनिस्ट पार्टी से   विधायक रह चुके हैं और एक बार समाजवादी पार्टी से। 90 के दशक के शुरुआती दिनों में, मुख्तार अंसारी अपने आपराधिक गतिविधियों के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे। 1995 के आसपास उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और 1996 में एक विधायक बन गए।

यह भी सच है कि माफिया मुख्तार अंसारी गैंग को पुलिस की कार्रवाइयों से अब तक 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की चपत लगी है। इतना ही नहीं मुख्तार के सहयोगियों व परिवारीजनों के 72 शस्त्र लाइसेंस भी निरस्त-निलंबित किए गए हैं। योगी सरकार की इस कार्रवाई को अपराध उन्मूलन की लिहाज से बड़ा कदम माना जा रहा है। सरकार मुख्तार को सुरक्षित जेल लाने की कोशिश कर रही है। वशर्ते कि मार्ग में कोई शरारत न हो। मुख्यमंत्री ने मुख्तार की पत्नी को आश्वस्त किया है कि मुख्तार मामले में कानून अपना काम करेगा। वैसे सबकी नजर मुख्तार की रोपड़ टू बांदा यात्रा पर है। भावी को कौन रोक पाया है? इसलिए कुछ भी कहने से बेहतर होगा कि तेल देखी जाए और उसकी धार देखी जाए, यही वक्त का तकाजा भी है।

 

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