childrens day

childrens day विशेष : गुम हो रहा है बचपन, आखिर कौन जिम्मेदार?

2095 0

नई दिल्ली। childrens day हर साल मनाया जाने वाला त्योहार है, लेकिन लगता है दुनिया में धीरे-धीरे बच्चों का अकाल पड़ता जा रहा है। पहले बचपन यानी चौदह-पंद्रह साल तक, पर गतिशील समाज में बचपन सिकुड़ता जा रहा है। टीन-एज गोया उम्र के दौर से गायब हो गई है। हर जगह बच्चों में परिपक्वता सालने लगी है।

पिछली पीढ़ी जिन बातों के बारे में पंद्रह-सोलह की उम्र में सोचती थी, उन बातों के बारे में नई पीढ़ी दस-ग्यारह में ही रूबरू होने लगी है। हायर सेकंडरी स्कूल की नौवीं कक्षा को पढ़ाते-पढ़ाते कई बार लगता है कि समय ज्यादा ही तेजी से भागने लगा है। कौन जिम्मेदार है इस गुम होते बचपन के लिए?

childrens day : बच्चों तुम्हें गंदे स्पर्श और अश्लील इशारों को समझना होगा

सबसे ज्यादा जिम्मेदारी है अभिभावकों की, पर दुर्भाग्य से बच्चे अभिभावकों की अतृप्त इच्छाओं को पूरा करने के माध्यम बन गए हैं। हर अभिभावक अपने बच्चों में अल्बर्ट आइंस्टाइन, राजकपूर, हेमामालिनी या न जाने कौन-कौन खोज रहा है? परिणामस्वरूप बेतहाशा सुविधाएं मुहैया करवाई जा रही हैं, जिनका उपयोग कम, दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है। नेट पर जो कुछ उपलब्ध है, वह किसी भी बच्चे को कभी भी परिपक्व बना सकता है।

दूसरा करियर की चूहा-दौड़ बच्चे को बच्चा रहने ही नहीं दे रही है-वे बेचारे पैदा होने के साथ ही आईआईटी, आईआईएम के साए में सांस लेने लगते हैं। मां-बाप ने उनके दिमाग में एक भूत का प्रवेश करा दिया है- जो रात में भी उन्हें डराता रहता है। वे ख्याली पुलाव पकाकर अपने बचपन को कुचलने के लिए आमादा है।

Children’s Day : बाल दिवस पर दे सकते हैं ये भाषण 

दूसरी जिम्मेदारी है अध्यापकों की, पर इनके लिए बच्चे ‘इमेज बिल्डिंग

एक्सरसाइज’का हिस्सा बन गए है। हमारा छात्र यदि दिल्ली,बम्बई,खड़गपुर या कानपुर जाएगा तो हमारी छवि तो बन ही जाएगी। हर कंकर को शंकर बनाने का हमें शौक होने लगा है। इस पूरी भागमभाग से बच्चा न तो भाग पा रहा है, न ही अपने-आप को समायोजित कर पा रहा है। हर जगह इंजीनियर बनाने की दुकानें खुल गई हैं, जो 9-10 साल के बच्चों में भ्रम पैदा कर रही है, गोया दुनिया में फकत एक काम बचा है?

सबसे ज्यादा तो कमाल फिल्मों ने किया है। इसके कारण उन बातों के बारे में बतियाने लगे हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती मीडिया बच्चों पर ज्यादा से ज्यादा हावी होती जा रही है। बच्चों को काउच पोटेटो में तब्दील किया जा रहा है। समाज के बाजारीकरण के कारण कम्पनियों का ध्यान बेचने पर हो गया। इस बेचने की प्रक्रिया के एकमात्र हथियार है ये नौनिहाल।

हर व्यक्ति को कुछ-न-कुछ बेचना है और सबका ध्यान इन बच्चों पर है शायद पालकों की जेब में से धन निकालना इनके ही बस की बात है। स्थिति यहां तक आ गई है कि बच्चे मम्मी-पापा को बतलाते हैं कि क्या खरीदा जाए और कैसे?

मेरी समस्या यह नहीं है कि बच्चे इतने समझदार क्यों है बल्कि इतनी जल्दी क्यों है? बचपन एक बार जाने के बाद वापस नहीं आएगा? जिंदगी का शायद सबसे स्वर्णिम अध्याय यही है। इसलिए इसको गवारा होना न जाने क्यों अच्छा नहीं लग रहा।

Related Post

CM Nayab Singh

नायब सिंह सैनी और मनोहर लाल खट्टर की सुरक्षा में चूक, देर रात सड़क पर खड़ा रहा काफिला

Posted by - February 21, 2025 0
चंडीगढ़। हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी (CM Nayab Singh) और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर की सुरक्षा में चूक…
पंचायत चुनाव में सतर्कता बरतने के थानाध्यक्ष ने दिये निर्देश

पंचायत चुनाव में सतर्कता बरतने के थानाध्यक्ष ने दिये निर्देश

Posted by - March 22, 2021 0
लखनऊ त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव व होली पर्व को लेकर सभी थानाध्यक्ष अपने-अपने क्षेत्रों में सतर्कता बरतें। संवेदनशील व अतिसंवेदनशील गांवों…
Ashok Gehlot

ब्रिटेन से विमान सेवा शुरु करने के फैसले पर सरकार करे पुनर्विचार : अशोक गहलोत

Posted by - January 5, 2021 0
जयपुर । राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने कहा कि देश में वैश्विक महामारी कोरोना के नए स्ट्रेेन…