Chandrashekhar Upadhyay

‘नीरज चौरसिया’ को जानते हैं भागवत, नरैण व चम्पत दादू?: चंद्रशेखर उपाध्याय

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लखनऊ। 22अक्टूबर 1990, मथुरा गोवर्धन मार्ग पर स्थित एक विद्यालय के छात्रावास में अर्द्ध-रात्रि डॉ. चन्द्रभान गुप्ता (भारतीय जनता पार्टी के तेरह वर्ष से अधिक महामंत्री (संगठन) रहे रामलाल के बड़े भाई) , पण्डित दीनदयाल उपाध्याय स्मारक समिति, नगला-चन्द्रभान के महामंत्री रहे नवीन मित्तल, विद्यार्थी परिषद के विस्तारक व मथुरा-वृन्दावन नगरपालिका के चेयरमैन रहे रविन्द्र पाण्डेय और मैं (Chandrashekhar Upadhyay) , उस खुफिया सूचना से चिंतित थे कि मथुरा-वृन्दावन में प्रशासन व पुलिस दोनों कोई बड़ी कार्रवाई करने जा रहे हैं। 1990 की कारसेवा में मथुरा में चलाए जा रहे उस भूमिगत-आन्दोलन-अभियान का सारा जिम्मा हम चारों के कन्धे पर ही था।

चन्द्रभान गुप्ता खांटी पण्डित का भेष बनाकर पोथी-पत्रा हाथ में लिए घूम रहे थे तो रविन्द्र पाण्डेय छद्म नाम ‘भवतोष’ का रूप धारण किए हुए थे, नवीन मित्तल के पास कारसेवकों के भोजन व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सूचनाओं के आदान-प्रदान का जिम्मा था और मेरे पास सूचना-संकलन के प्रसारण-प्रचारण- प्रकाशन की जिम्मेदारी थी, जिसे, मैं (Chandrashekhar Upadhyay) दैनिक समाचार-पत्र अमर उजाला के मथुरा-वृन्दावन ब्यूरो-चीफ के दायित्व से बखूबी निभा रहा था। मथुरा-वृंदावन अज्ञात भय से आतंकित थे, नगरवासियों के मन-मस्तिष्क में आसन्न संकट के बादल छाए हुए थे लेकिन उनकी सहानुभूति और समर्थन दोनों श्रीराम मन्दिर-आन्दोलन के साथ थे। संघ तथा विश्व हिन्दू परिषद की योजना व रचना पर देश भर के गली-मुहल्लों- कॉलोनियों और गांव दर गांव में कारसेवकों के जत्थे प्रदर्शन पर रहे थे,कई जगहों पर कारसेवकों की गिरफ्तारियां भी हो रही थीं। विहिप के लगभग सभी बड़े नेता श्रीअयोध्याजी में डटे हुए थे।

29 अक्टूबर को पूरे मथुरा-वृन्दावन में पुलिस का सख्त पहरा था, पुलिस चौकन्नी थी,उसकी मोटर-लारियां सायरन बजाती हुई सारे शहर में घूम रही थीं, नगरवासियों को घर में ही रहने की हिदायत दी जा रही थी,उस दिन मथुरा-वृन्दावन के अधिसंख्य मन्दिरों में भी दर्शनार्थियों की संख्या रोज की अपेक्षा काफी कम थी, जमुना के सभी घाट भी लगभग खाली ही थे ,सारे शहर में कर्फ्यू लागू था। कारसेवकों का पहला जत्था जमुनापार से निकला, मैं (Chandrashekhar Upadhyay) फोटोग्राफर सुनील शर्मा के साथ मौके पर रवाना हो ही रहा था, तभी मेरे एक अधीनस्थ ने सूचना दी कि होलीगेट पर कारसेवकों और पुलिस की भिड़ंत हो गयी है, हम दोनों होलीगेट की तरफ दौड़े, मौके पर पहुंचे तो देखा मथुरा के जिला- कलक्टर और एसएसपी दोनों वहां थे, सामान्यत: शिष्ट-सौम्य कलेक्टर डॉ. राजीव कुमार, उस दिन बेहद तनाव में थे और एसएसपी अजय कुमार अग्रवाल बेहद गुस्से में। कारसेवकों के जत्थे चारों दिशाओं से होलीगेट की तरफ आ रहे थे, पुलिस उन्हें वहीं रोकने की कोशिश कर रही थी, धीरे-धीरे होलीगेट पर कारसेवकों की संख्या बढ़ रही थी और पुलिस वालों की तादाद कम,जयश्रीराम के उद्घोषों से समूचा माहौल गुंजायमान था।

‘उधार का सम्मान’ व ‘अपनों का अपमान’ की विकृत राजनीतिक मानसिकता ने भुला दिया 1990 की कारसेवा का पहला बलिदान
29 अक्टूबर 1990 को मथुरा में चलीं थीं पुलिस की गोलियां, 30 को सरयू किनारे रक्तरंजित हुए थे कारसेवक

चन्द्रभान गुप्त,चन्द्रशेखर उपाध्याय, नवीन मित्तल व रविन्द्र पाण्डेय के सामूहिक-नेतृत्व में चला था ब्रजमंडल में भूमिगत-आन्दोलन

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होलीगेट पर जितने लोग उतनी चर्चाएं,, कोई कहता, वहां यह हो गया, वहां यह हो गया, अभी तक स्थिति तनावपूर्ण लेकिन नियंत्रण में थी लेकिन तभी कुछ अति-उत्साही युवा कारसेवक पुलिस का घेरा तोड़ते हुए होलीगेट के अन्दर पहुंच गए और देखते-देखते कारसेवकों की भारी- भीड़ बाजार में दाखिल हो गयी और घाटों की तरफ बढ़ी, हालांकि कारसेवक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे थे लेकिन उत्तेजक नारे जरूर लगा रहे थे, कुछ कारसेवकों ने एकाध वाहन को क्षति भी पहुंचायी, पुलिस इस बात से खुश थी कि कारसेवकों की भीड़ श्रीकृष्णजन्मभूमि की तरफ नहीं गयी, ऐसा लग रहा था कि आज का दिन प्रतीक-विरोध के साथ ही बीत जाएगा। अब दोपहर के बारह बज गये थे, तभी बंगाली घाट के पास से गुजर रहे कारसेवकों का एक जत्था अचानक उग्र हो गया, उसने उत्तेजक नारे लगाने शुरू कर दिए। पुलिस ने बल-प्रयोग कर उन्हें खदेड़ दिया, तभी अफवाह उड़ी कि होलीगेट के बाजार में नाराज कारसेवकों ने एक मोटर साइकिल फूंक दी है।

बंगाली-घाट के चौकी इंचार्ज आई.पी.शर्मा के साथ कुछ कारसेवकों की गाली-गलौज व गुत्थम-गुत्था हो गयी है। बस यही से मथुरा का माहौल बिगड़ गया। अफवाहों और आधी-अधूरी सूचनाओं का गुबार ऐसा फैला कि पुलिस हिंसक हो गयी और अचानक उसने कारसेवकों पर बर्बर लाठी-चार्ज शुरू कर दिया, कारसेवकों में अफरातफरी मच गयी, जिसको जहां जगह मिली, वह उस तरफ दौड़ा और तभी गोली चलने की आवाजें आने लगी, सात या आठ मिनट तक गोली चलने की आवाजें आयीं फिर पुलिस की बन्दूकें शान्त हो गयीं। हम सभी मीडियाकर्मियों को पुलिस ने अपने घेरे में ले लिया था, लगभग कारसेवक भी वहां से अपने-अपने घरों को चले गए थे, अब हमारी चिन्ता पुलिस की गोली से हुए नुकसान की जानकारी हासिल करने की थी। हम लोग चर्चा कर ही रहे थे कि एक एम्बुलेंस बड़ी तेजी से आयी और होलीगेट से निकलकर कैण्ट की तरफ चली गई। होलीगेट पर मौजूद एलआईयू के एक दरोगा ने चुपचाप हमें बताया कि एक कारसेवक को गोली लगी है।

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मैं (Chandrashekhar Upadhyay) अपने कार्यालय पहुंचा लेकिन पुष्ट- सूचना हमें नहीं मिल पा रही थी, हमारे फोन लगातार घनघना रहे थे, हम किसी को कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे। आपातकाल जैसे हालात थे, तभी विद्यार्थी-परिषद के एक कार्यकर्ता ने मुझे सूचना दी कि संगठन के एक कार्यकर्ता नीरज चौरसिया(Neeraj Chaurasia) को गोली लगी है, उसके पिता बंगाली-घाट पर पान की दुकान चलाते हैं, उसने बताया कि नीरज छत पर खड़े होकर कारसेवकों पर फूल बरसा रहा था। पुलिस का पहरा इतना सख्त था कि हम लोग सूचना-संकलन के लिए घटनास्थल व नीरज चौरसिया के घर तक भी नहीं पहुंच पाए। शाम हो गयी, लगभग पौने सात बजे के आसपास पुलिस के एक सहयोगी मित्र ने मुझे बताया कि नीरज चौरसिया की मौत हो गयी है और पुलिस उसके शव को आगरा से रिफाइनरी थाने तक ले आयी है। पुलिस गुपचुप उसका दाह-संस्कार वहीं करने की योजना बना रही है, इसलिए उसके माता-पिता व अन्य परिजनों,पण्डित व नाई को लेने कुछ पुलिसकर्मियों को मथुरा भेजा गया है। पुलिस उसकी देह को मथुरा लाने का साहस नहीं जुटा पा रही थी, अब यहां हमारी टीम सक्रिय हो गयी, मैं, मेरे अधीनस्थ रमेश मिश्रा, फोटोग्राफर सुनील शर्मा और एक दो सहयोगी मथुरा के तत्समय सांसद राजा मानवेंद्र सिंह (जनता-दल) के डैम्पियर-नगर स्थित आवास पर पहुंचे, राजा मानवेंद्र सिंह अवागढ़ स्टेट के उत्तराधिकारी थे और तत्समय प्रधानमंत्री राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह के मौसेरे भाई थे, मैंने उन्हें सारा घटनाक्रम बताया। वह बेहद आहत थे। मैंने उनसे कहा कि मथुरा का सांसद होने के नाते आप हमारे साथ चलिए और नीरज चौरसिया को श्रद्धांजलि अर्पित कीजिए। वह राजी हो गये, हमारा मकसद नीरज चौरसिया (Neeraj Chaurasia) के शव तक पहुंचना था ताकि पुलिस सुबूत न मिटा सके? हमारी टीम के साथ सांसद राजा मानवेंद्र सिंह जमुनापार गये, उनके कारण पुलिस ने हमें भी नहीं रोका। हम उसका चेहरा तो नहीं देख पाए लेकिन इतनी पुष्टि अवश्य हो गयी कि उसके सिर में गोली लगी थी, जो लक्ष्य लेकर चलायी गयी थी जबकि प्रशासन का दावा था कि पुलिस ने कुछ राउंड हवाई-फायर ही किए हैं, यहां बड़ा सवाल यह था कि नीरज चौरसिया तो छत पर खड़ा होकर कारसेवकों पर फूल बरसा रहा था फिर हवाई-फायर से कैसे गोली उसके सिर में धंस गयी? हमारी टीम और सांसद के जमुना-घाट पहुंचने पर अन्य मीडियाकर्मी भी वहां पहुंच गए। अन्तिम-संस्कार के समय नीरज चौरसिया के रोते-बिलखते माता-पिता, अन्य परिजन, पण्डित व नाई आदि मौजूद थे, थोड़ी-देर में एक बलिदानी-इतिहास रचकर नीरज चौरसिया की पार्थिव-देह पंचतत्व में विलीन हो गयी।

कार्यालय पहुंचकर मैंने (Chandrashekhar Upadhyay) खबर लिखी, दूसरे दिन तीस अक्टूबर को श्रीअयोध्याजी में गोली चल गयी तो नीरज चौरसिया की खबर, अब बेखबर हो गयी जो आज तक है। समय बीता, उत्तर-प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, मुख्यमंत्री मथुरा-वृन्दावन में थे, मैंने कल्याण सिंह को नीरज चौरसिया (Neeraj Chaurasia) की याद दिलायी, लखनऊ पहुंचते ही उन्होंने मथुरा-गोलीकांड पर एक उच्चस्तरीय जांच-समिति का गठन कर दिया। कलराज मिश्र समेत कई नामचीन लोग उसमें थे, मुझे भी उस जांच-समिति में रखा गया। 1991 में, मैं मथुरा-वृन्दावन से अन्यत्र चला गया, ब्रजमंडल अब छूट गया। 06 दिसम्बर 1992 को बाबरी-विध्वंस के बाद कल्याण सिंह की सरकार बर्खास्त कर दी गयी, उसके बाद भी पांच साल बाद कल्याण सिंह की सरकार बनी फिर रामप्रकाश गुप्त व राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बनाए गए फिर दीर्घ- अवधि के बाद बाबा योगी की सरकार, पर नीरज चौरसिया हत्याकांड की जांच का क्या हुआ, किसी को आज-तक पता नहीं?

24 जनवरी 2024 के कार्यक्रम के आलोक में नीरज चौरसिया (Neeraj Chaurasia) की विस्मृति दुष्यंत की याद दिलाती हैं, सिंहासन की ‘विलावजह-अकड़’ और मनमानी पर दुष्यंत ने कहा था कि बौने जबसे मेरी बस्ती में आकर रहने लगे हैं, रोज कद्दो-कदावत के झगड़े होने लगे हैं, मुझे सोने दो, मत जगाओ, वरना हस्ती का हिसाब होने लगे हैं।

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