नवरात्रि में जो भी माता रानी की पूजा करते हैं, उनके सभी तरह के रोग और बाधा दूर हो जाते हैं और कष्टों के निवारण होता है। इस साल चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से शुरू हो रही है और इसका समापन 21 अप्रैल को होगा।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
पहला मुहूर्त- 13 अप्रैल सुबह 5:58 बजे से 9:14 बजे तक
दूसरा अभिजीत मुहूर्त- दोपहर 11:30 से 12:35 तक
कुल अवधि- 4 घंटे 16 मिनट
कलश स्थापना की पूजा सामग्री
चावल, सुपारी, रोली, जौ, सुगन्धित पुष्प, केसर, सिन्दूर, लौंग, इलायची, पान, सिंगार सामग्री, दूध, दही, गंगाजल, शहद, शक्कर, शुद्ध घी, वस्त्र, आभूषण, यज्ञोपवीत, मिट्टी का कलश, मिट्टी का पात्र, दूर्वा, इत्र, चन्दन, चौकी, लाल वस्त्र, धूप, दीप, फूल, स्वच्छ मिट्टी, थाली, जल, ताम्र कलश, रूई, नारियल आदि।
नवरात्रि व्रत करने की विधि
- नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना कर नौ दिनों तक व्रत रखने का संकल्प लें.
- पूरी श्रद्धा भक्ति से मां की पूजा करें.
- दिन के समय आप फल और दूध ले सकते हैं.
- शाम के समय मां की आरती उतारें.
- सभी में प्रसाद बांटें और फिर खुद भी ग्रहण करें.
- प्रसाद ग्रहण करने के बाद भोजन करें. हो सके तो इस दौरान अन्न न खाएं, सिर्फ फलाहार ग्रहण करें.
- अष्टमी या नवमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराएं. उन्हें उपहार और दक्षिणा दें.
- अगर संभव हो तो हवन के साथ नवमी के दिन व्रत का पारण करें.
जानें किस दिन, कौन सी देवी की पूजा होगी-
13 अप्रैल (नवरात्रि का पहला दिन):- इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है। माता शैलपुत्री हिमालय राज की पुत्री हैं। माता के इस स्वरूप की सवारी नंदी हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल का फूल लिए हुए हैं। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है।
14 अप्रैल (नवरात्रि का दूसरा दिन):– इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा का ही रूप हैं। ऐसी मान्यता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं, तब उनका ब्रह्मचारिणी रूप सामने आया था।
15 अप्रैल (नवरात्रि का तीसरे दिन):- इस दिन की देवी माँ चंद्रघण्टा हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम चंद्रघण्टा पड़ा था। शिव के मस्तक पर स्थापित आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है।
16 अप्रैल (नवरात्रि का चौथा दिन):- इस दिन मां कुष्माण्डा की पूजा का विधान है। शास्त्रों में मां के इस स्वरूप का वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। मां के इसी रूप के कारण पृथ्वी पर हरियाली है।
17 अप्रैल (नवरात्रि का पांचवां दिन):- इस दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है। माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। इसलिए स्कंद की माता होने के कारण मां का यह नाम पड़ा है। मां के इस स्वरूप की चार भुजाएं हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती दिखाई देती हैं।
18 अप्रैल (नवरात्रि का छठा दिन):- इस दिन मां कात्यायिनी की पूजा की जाती है। मां कात्यायिनी दुर्गा माता का उग्र रूप है, जो साहस का प्रतीक है। मां शेर पर सवार होती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। इस बार मां घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं।
19 अप्रैल (नवरात्रि का सातवां दिन):- इस दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। ये माता का उग्र रूप है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब मां पार्वती ने शुंभ-निशुंभ राक्षसों का वध किया था, तब उनका रंग काला हो गया था।
20 अप्रैल (नवरात्रि का आठवां दिन):- इस दिन मां महागौरी की आराधना की जाती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान का प्रतीक है। इस दिन अष्टमी भी मनाई जाएगी।
21 अप्रैल (नवरात्रि का नौवां और अंतिम दिन):- यह दिन मां सिद्धिदात्री को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि जो कोई मां के इस रूप की आराधना करता है, उसे सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं।
नवरात्रि की समाप्ति पर कन्याओं की करें पूजा
नवरात्रि के आखिरी दिन यानि कि नौवें दिन कन्या पूजन किया जाता है। इस दिन कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराया जाता है। दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को नौ देवी स्वरूप समझकर उनका स्वागत किया जाता है।
चैत्र नवरात्रि पूजा के फायदे :-
- धन व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है
- वंश आगे बढ़ता है
- शत्रुओं का नाश होता है
- दुःख, रोग व बीमारियों से छुटकारा मिलता है
- भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है