लखनऊ/ देहरादून। भारतीय जनसंघ के संस्थापक और एकात्म मानवतावाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र न्यायविद चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (CS Upadhyay) ने केंद्र एवं समस्त राज्य सरकारों से मांग की है कि वे एक साल के लिए समस्त हिन्दी-विषयक (Hindi Related) पुरस्कारों, कर्मकाण्डों , सम्मेलनों , गोष्ठियों और आयोजनों पर कड़ाई से रोक लगाएं। इन नुमाइशों को संज्ञेय-अपराध घोषित करने की अधिसूचना जारी करें।
उनका (CS Upadhyay) कहना है कि इन निरर्थक एवं अपरिणामकारी जलसों में अकूत पैसा खर्च हो जाता है। इस पैसे का सदुपयोग किया जा सकता है। इस एक वर्ष के स्थगन से प्राप्त धनराशि का उपयोग देश के उन सभी उच्च-पाठ्यक्रमों की पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी (Hindi) एवं अन्य समस्त भारतीय भाषाओं ( संविधान की अष्टम अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाएं जिनकी लिपि उपलब्ध है) के लिए किया जाना चाहिए जिनकी पुस्तकें आजादी के 75 साल बाद भी भी हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं।
दूसरा देश की आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने सभी राज्यों में ‘हिन्दी ग्रन्थ अकादमी’ का गठन किया था। देश के समस्त उच्च पाठ्यक्रमों की पुस्तकें देशज भाषाओं में उपलब्ध कराना अकादमी का मूल उद्देश्य था।
उन्होंने कहा कि 1977 में उत्तर-प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में समाहित कर दिया गया, फलस्वरूप अकादमी इससे हिन्दी संस्थान (Hindi Sansthan) का एक प्रभाग मात्र बनकर रह गयी। उन्होंने उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) से अनुरोध किया है कि वे मेरे सुझावों की दिशा में उत्तर-प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी को पुनर्जीवित करने का आदेश जारी करें। विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Diwas) पर देहरादून से वक्तव्य जारी करने वाले न्यायविद , सदस्य विधि आयोग (समकक्ष प्रमुख सचिव,विधायी)चन्द्रशेखर पण्डित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।
हिन्दी माध्यम से एल-एल.एम. उत्तीर्ण करने वालेवे प्रथम भारतीय छात्र हैं। न्यायिक क्षेत्र के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘न्याय-मित्र’ से पुरस्कृत न्यायाधीश हैं।
‘हिन्दी से न्याय’ (Hindi se Nayay) देशव्यापी अभियान के नेतृत्व पुरुष हैं। हिंदी (Hindi) को शिखर पर ले जाने की अपनी जिद के लिए वे पूरे देश में जाने जाते हैं। उन्होंने केंद्र सरकार और समस्त राज्य सरकारों से अपेक्षा की है कि अगर वे वाकई हिन्दी का उत्थान करना चाहती हैं तो उन्हें एक साल के लिए हिंदी (Hindi) के नाम पर होने वाले कर्मकांडों और अपव्यय को रोकना ही होगा। यही वक्त का तकाजा भी है।