नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायणन से जुड़े 1994 के जासूसी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट सीबीआई को सौंपने का बृहस्पतिवार को आदेश दिया और एजेंसी को मामले में आगे और जांच करने का भी निर्देश दिया।
कोर्ट के निर्देश से कसा दोषी अधिकारियों पर जांच का शिकंजा
शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) समिति के निष्कर्षों को प्रारंभिक जांच का हिस्सा मान सकती है। न्यायालय ने एजेंसी को तीन माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश अवकाशप्राप्त न्यायमूर्ति डी के जैन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखा जाए और इसे प्रकाशित नहीं किया जाए।
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शीर्ष अदालत ने पूर्व डीजीपी सिबी मैथ्यूज की दलीलों को खारिज कर दिया, जो उस वक्त एसआईटी जांच टीम का नेतृत्व कर रहे थे, कि समिति ने नारायणन को सुना लेकिन उनका पक्ष नहीं सुना। पीठ ने कहा कि समिति को इस मामले में फैसला नहीं करना था बल्कि उसे अप्रत्यक्ष प्रमाणों (परिस्थितिजन्य साक्ष्य) को देखना था और अधिकारियों की चूक पर पहली नजर में एक नजरिया बनाना था।
शीर्ष अदालत केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें नारायणन से जुड़े जासूसी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर समिति द्वारा रिपोर्ट पर विचार करने का अनुरोध किया गया था। इस मामले में नारायणन को शीर्ष अदालत ने बरी करने के साथ ही 50 लाख रुपये का मुआवाजा भी दिलवाया था। केंद्र ने पांच अप्रैल को, शीर्ष अदालत का रुख कर समिति की रिपोर्ट पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था और इसे राष्ट्रीय मुद्दा बताया था।
शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर, 2018 को केरल सरकार को नारायणन को 50 लाख रूपए बतौर मुआवजा देने का निर्देश देने के साथ इस समिति की नियुक्ति की थी। जासूसी का यह मामला 1994 का है जो दो वैज्ञानिकों और चार अन्य द्वारा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम पर कुछ गोपनीय दस्तावेजों को दूसरे देशों को दिए जाने के आरोपों से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिक नंबी नारायण को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था जब केरल में कांग्रेस की सरकार थी।