प्रयागराज। गोवर्धन पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर निर्माण का राजनीतिक श्रेय लेना चाह रही है। माघ मेला में पधारे शंकराचार्य ने कहा कि केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का शासन है। उन्हें विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) और राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) का बल प्राप्त है। इस अवसर पर वह अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का श्रेय प्राप्त करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राम मंदिर को लेकर कोई भूमिका रही हो। ऐसा तो नहीं है, लेकिन जब शासनतंत्र है तो बहती गंगा में हाथ धोने से कौन चूकेगा।
स्वामी निश्चलानंद ने बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के समय तीन शंकराचार्यों और वैष्णवाचार्यों ने “रामालय ट्रस्ट” पर हस्ताक्षर कर दिये थे, लेकिन उन्होंने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था। मेरी उपेक्षा कर दी जाती तो मैं मुर्दाबाद करने वाला तो नहीं हूं, सत्य को प्रकट करने वाला हूं। यदि हस्ताक्षर कर दिया होता तो मंदिर और मस्जिद दोनों की योजना क्रियान्वित हो गयी होती। तब जो श्रेय आज भाजपा को मिल रहा है या मिलने वाला है, नरसिम्हा राव के शासनकाल में कांग्रेस को मिल गया होता।
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शंकराचार्य ने कहा कि उस समय नरसिम्हा राव ने कहा था पुरी के शंकराचार्य भले अकेले हैं, उन्होंने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। हमारी क्षमता नहीं है कि उनकी अवहेलना कर मंदिर-मस्जिद दोनों बनवा दें। उन्होंने बताया कि भगवान की प्रेरणा से हस्ताक्षर नहीं किया, मुझे यातना दी गयी, मैं उस यातना को उपहार समझता हूं।
गोवर्धन पीठाधीश्वर ने कहा कि गुजरात में स्थापित लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति से कहीं अधिक ऊंचे अयोध्या में श्रीराम खड़े होंगे। तब अपने आप सिद्ध हो गया कि श्रीराम को एक नेता का रूप दिया जा रहा है। जनता भले ही उन्हें भगवान के रूप में देखे। इस कार्य में जो भी सहयोगी हैं, वे सब अपने शासन के उपयोग का श्रेय लेने का कार्य रहे हैं।
पीठाधीश्वर ने कहा कि जिस विषय के जो जानकार हैं, अधिकृत हैं, उनसे पूछना चाहिए। उचित होता शासन, धार्मिक और आध्यात्मिक तंत्र के व्यक्ति बैठकर सद्भाव पूर्वक संवाद के माध्यम से सैद्धांतिक निर्णय लेते और मंदिर निर्माण कार्य को क्रियान्वित करते, लेकिन हम लोगों से श्रीराम मंदिर को लेकर कोई परामर्श नहीं किया गया। हमने विरोध भी नहीं किया, हमने हंसकर बोल रहे हैं। लेकिन इतना तो विचार करना चाहिए था कि जिसके हस्ताक्षर न करने पर आज आपको श्रेय मिल रहा है।
स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि उचित तो यह होता कि श्रीराम मंदिर धर्मिक और आध्यात्मिक दुर्ग के रूप में, संस्थान के रूप में स्थापित किया जाता, शिक्षा, रक्षा, संस्कृति, सेवा, धर्म और मोक्ष संस्थान के रूप में स्थापित किया जाता तो सोने में सुहागा, बहुत लाभ होता। उन्होंने कहा कि राम जी का सेक्युलर करण हो रहा है।
श्री चम्पतराय ने कहा पुजारी ब्राह्मण हो यह आवश्यक नहीं। अर्थात हम ब्रह्मणेत्तर रखेंगे। मर्यादा पुरूषेत्तम रामजी अपनी जन्म भूमि में यथास्थन अर्चना विग्रह के रूप में प्रतिष्ठित होंगे, लेकिन पुजारी कोई और हो सकते हैं। अम्बेडकर की मूर्ति कहीं बनेगी तो पुजारी ब्राह्मण होंगे। इसका अर्थ यह है कि शासन तंत्र का का यह दुरूपयोग हुआ।
स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि जिस विषय के जो जानकार हैं, अधिकृत हैं, उनसे पूछना चाहिए। हम लोगों से श्रीराम मंदिर को लेकर कोई परामर्श नहीं किया गया। हमने विरोध भी नहीं किया लेकिन इतना तो विचार करना चाहिए था कि जिसके हस्ताक्षर न करने पर आज आपको श्रेय मिल रहा है, उनसे विचार विमर्श करना चाहिए था।