नई दिल्ली। अयोध्या मंदिर विवाद मामले में विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा पाने वाली पार्टियों में से एक निमोर्ही अखाड़ा ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। याचिका में अधिग्रहित भूमि के 67.7 एकड़ जमीन में से अधिकांश हिस्सा रामजन्मभूमि न्यास के पक्ष में सौंपने की केंद्र सरकार की याचिका का विरोध किया गया है।
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निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के उस अनुरोध के खिलाफ याचिका दाखिल की
निर्मोही अखाड़ा ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के उस अनुरोध के खिलाफ याचिका दाखिल की है, जिसमें सरकार ने अदालत से राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की गैर विवादित भूमि को लौटाने का अनुरोध किया था। अखाड़े का कहना है कि सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण से वह मंदिर नष्ट हो जाएंगे, जिनका संचालन अखाड़ा करता है। इसलिए उसने अदालत से विवादित भूमि पर फैसला करने के लिए कहा है।
राम जन्मभूमि न्यास ने 1991 में अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि को मूल मालिकों को वापस दिए जाने की मांग की
बता दें कि बीते 29 जनवरी को केंद्र सरकार ने अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद स्थल के पास अधिग्रहित की गई 67 एकड़ जमीन को उसके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिए सुप्रीम कोर्ट के तरफ रुख किया था। न्यायालय में एक नई याचिका दाखिल करते हुए केंद्र ने कहा था कि उसने 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के पास 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। याचिका में बताया गया था कि राम जन्मभूमि न्यास ने 1991 में अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि को मूल मालिकों को वापस दिए जाने की मांग की थी।
Nirmohi Akhara files an application in the Supreme Court opposing Centre’s request to release excess land acquired in Ayodhya. Akhara says acquisition of land by the government had led to destruction of many temples managed by the Akhara. So it wants Court to decide title dispute
— ANI (@ANI) April 9, 2019
अदालत ने 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बांटे जाने का दिया था आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने पहले विवादित स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन पर यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार ने 1991 में विवादित स्थल के पास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 आदेश के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गई हैं। अदालत ने 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटे जाने का आदेश दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार मध्यस्थता की पहले से ही चल रही है प्रक्रिया
अदालत ने जमीन को केंद्र सरकार के पास रखने के लिए कहा था और यह निर्देश दिया था कि जिसके पक्ष में फैसला आएगा उसे ही जमीन दी जाएगी। रामलला विराजमान की तरफ से वकील ऑन रिकॉर्ड विष्णु जैन बताया था कि दोबारा कानून लाने पर कोई रोक नहीं है लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है।
अखाड़े ने कहा कि सरकार द्वारा भूमि के अधिग्रहण से उसके द्वारा प्रबंधित विभिन्न मंदिर नष्ट हो गए थे। इसलिए अदालत को विवाद का फैसला करना चाहिए।