देहरादून। गत 4 अगस्त को भाजपा के पितृ—दल भारतीय जनसंघ के शलाका—पुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र प्रख्यात न्यायविद चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय (CS Upadhyay) को अपना सलाहकार नियुक्त करते समय कांग्रेस के बड़े रणनीतिकार हरीश रावत को भी कदाचित अनुमान नहीं होगा कि उनका यह फैसला कांग्रेस के लिए ‘वरदान’ और भाजपा के लिए ‘वाटरलू’ साबित होगा।
यह फैसला करते वक्त श्री रावत ने भविष्य की अपनी प्रशासकीय टीम के लिए वैचारिक मान्यताओं, परंपराओं, मिथकों के अनावश्यक दुराग्रहों और मानसिकताओं के बजाय एक श्रेष्ठ चयन को वरीयता दी थी लेकिन इसके राजनीतिक संदेश दूर तक चले गए। अपनी ही सरकार में अपने ही लोगों द्वारा अपमानित व उपेक्षित संघ तथा भाजपा के जमीनी व असली कार्यकर्ताओं ने इस घटनाक्रम से खुद को संबद्ध किया और मुखर हो गए।
4 अगस्त से ही संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों समेत भाजपा के तपस्वी एवं जीवनव्रती कार्यकर्ताओं का चंद्रशेखर के पास पहुंचना शुरू हो गया। देश की शीर्ष अदालतों में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा हेतु चंद्रशेखर के ‘हिंदी से न्याय’ इस देशव्यापी अभियान को भाजपा के मुख्यमंत्रियों और नेताओं द्वारा क्षतिग्रस्त किए जाने से वे सभी आहत थे, उन्होंने श्री रावत के इस कदम की सर्वत्र सराहना की और उनका साथ देने का संकल्प व्यक्त किया।
अपने स्थापना पुरुष के प्रपौत्र को श्री रावत द्वारा इस प्रकार सम्मान दिए जाने से खुश भाजपा व संघ के तमाम जमीनी और असली कार्यकर्ताओं ने उस दिन समवेत स्वर में नारा लगाया था—
‘भारत मां, हम शर्मिन्दा हैं। मातृभाषा के हत्यारे जिन्दा हैं।’
उन्होंने श्री रावत को अपनी आवाज माना और उनके पथ पर चलने के लिए सहर्ष तैयार हो गए। 29 अगस्त को संघ के प्रचारक और विश्व हिंदू परिषद के महामंत्री संगठन रहे महेंद्र सिंह नेगी ने रायपुर विधानसभा क्षेत्र के दो सौ बीघा कॉलोनी में अपने हजारों समर्थकों के साथ भाजपा को ललकारा और कहा कि यह भाजपा के अंत की शुरुआत का ऐलान है। अपने समर्थकों में गुरुजी के नाम से विख्यात श्री नेगी के साथ भाजपा के बड़े नेता राजकुमार जायसवाल ने भाजपा तथा यूकेडी की प्रथम पंक्ति के नेता रहे व दिल्ली की आम आदमी पार्टी के प्रदेश कोआर्डिनेटर शीशपाल सिंह विष्ट ने भी ‘आप—’ छोड़ने का फैसला करते हुए संयुक्त रूप से हुंकार भरी कि प्रदेश के 70 विधानसभा क्षेत्रों में इतनी ही संख्या में कार्यक्रम होंगे और यह ‘ सच’ भी साबित हुआ।
केवल चार दिन की तैयारी में हजारों की संख्या में जुटे नाराज संघियों एवं भाजपाइयों को देख प्रसन्नचित्त हरीश रावत ने कहा कि भाजपा की विदाई का रणसिंगा बज चुका है। भावुक श्री रावत ने उस दिन कहा था कि मैं मिट्टी का आदमी हूं, मिट्टी को समझता हूं। मिट्टी में बदलाव की महक है। श्री रावत ने कहा था कि 2016 में भाजपा, कांग्रेस के कुछ नेताओं को अपने साथ ले गई थी, आज संघ व भाजपा के जमीनी व असली कार्यकर्ता हमारे साथ खड़े हैं।
इसके बाद तो संघ व उसके अनुषांगिक संगठनों समेत भाजपा के असली कार्यकर्ताओं का कांग्रेस में शामिल होने का सिलसिला शुरू हो गया। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में अब लगभग सौ—डेढ़ सौ भाजपाई प्रतिदिन कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर रहे हैं। उधर, भाजपा अपने विधायकों की भगदड़ रोकने या कांग्रेस तथा अन्य दलों के विधायकों को तोड़ने में अपना समय गंवा रही है। इस बीच बहुत तेजी से कांग्रेस का परिवार बढ़ रहा है। भाजपा कांग्रेस की बजाय विधायकों को तरजीह दे रही है। उधर श्री रावत जानते हैं कि कार्यकर्ता होंगे तो लोग विधायक स्वत: ही बन जाएंगे।
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कुमायूं में नाराज भाजपाइयों ने विरोध का नायाब तरीका निकाला। दशकों तक भाजपा का मजबूत चेहरा रहे नवीन पंत व ज्ञानेंद्र जोशी समेत पार्टी की महिला नेता दीप्ति चुफाल, प्रेमलता पाठक ने सैकड़ों भाजपाइयों के साथ पार्टी छोड़ने का ऐलान किया और ‘सारथी’ नामक संस्था का गठन कर भाजपा को कुमायूं एवं तराई से जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया। पार्टी छोड़ चुके इन बड़े नेताओं के साथ उमेश सैनी, दिशांत टंडन, महेश जोशी, नंदलाल आर्य ने भाजपा पर कार्यकर्ताओं को ठगने का आरोप लगाया। उपरोक्त सभी भाजपा के बड़े नाम हैं। उन्होंने ‘सारथी’ के बैनर तले इस सामाजिक आंदोलन की शुरुआत पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपौत्र चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय से 4 सितंबर को कराई एवं प्रख्यात समाजसेविका व दलित नेत्री श्रीमती सुमित्रा प्रसाद को इसका संस्थापक अध्यक्ष घोषित किया। इसका संदेश भी दूर तक गया।