आगरा। यूपी के आगरा जिले में एक ऐसी बेटी है जो अपने घर पर ही मोती उगाती है। जी हां आपने सही सुना घर पर ही एक ड्रम में किए प्रयोग से उसका हौसला बढ़ा है। अब इस युवती ने मोती उगाने की ट्रेनिंग लेकर इस काम को शुरू कर दिया है। मोती उगाने वाली इस बेटी का नाम रंजना यादव है । 14 गुणा 14 फीट के तालाब में मोती की फसल लगाकर अब इसमें दो हजार सीप डाली गई है।
पहले एक ड्रम में किए गए प्रयोग से सात-आठ मोती ‘उग’ आए तो रंजना यादव का हौसला बढ़ा
बता दें कि पहले एक ड्रम में किए गए प्रयोग से सात-आठ मोती ‘उग’ आए तो रंजना यादव का हौसला बढ़ गया। इस तालाब में डाली गई करीब दो हजार सीप से नए साल में नवंबर तक मोती की ‘उपज’ मिलेगी। बकौल रंजना आगरा में मोतियों की खेती (पर्ल फार्मिंग) का यह पहला प्रयास है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंस से एमएससी कर चुकी हैं रंजना
डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइफ साइंस से एमएससी कर चुकी रंजना ने पढ़ाई के दौरान पर्लफार्मिंग के बारे में जाना। भुवनेश्वर जाकर पर्ल फार्मिंग की विधिवत प्रशिक्षण लिया। उन्होंने पिता सुरेश यादव के महर्षिपुरम स्थित प्लाट में तालाब बनाया। दो माह पहले गुजरात से मंगाई गईं इसमें सीप डाली। सीप तालाब में एक मीटर गहराई में लटकाए गए जालीदार बैग में रखी गई हैं। रंजना बताती हैं कि इसमें मानवीय प्रयास शामिल है लेकिन मोती प्राकृतिक रूप से पैदा होते हैं और इनकी मांग खूब है।
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…तो जाने कैसे बनता है मोती?
प्राकृतिक रूप से मोती का निर्माण तब होता है जब रेत, कीट आदि किसी सीप अंदर पहुंच जाते हैं। तब वो उसके ऊपर चमकदार परतें चढ़ती है। यह परत मुख्यत: कैल्शियम की होती है। मोती उत्पादन भी इसी तरीके से होता है। सीप के अंदर 4-6 मिलीमीटर व्यास के ‘बीड या न्यूक्लियर’ डाला जाता है और तैयार होने पर मोती को निकाल कर पॉलिश कराई जाती है।
गहन देखभाल है जरूरी
न्यूक्लियर डालने से पहले और बाद में सीप को कई प्रक्रिया से गुजारा जाता है। प्रतिरोधक दवाएं और प्राकृतिक चारा (एल्गी, काई) दिया जाता है फिर तालाब में डाला जाता है। शुरूआत में रोज फिर एक दिन छोड़कर निरीक्षण किया जाता है। बीमार सीपों को दवा देना, मृत सीपों को हटाना, तालाब में ऑक्सीजन का इंतजाम, बैग की सफाई आदि जरूरी कार्य किए जाते हैं।