कोलकाता। विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम की पड़ताल करते हुए नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने कहा है कि भारत में उत्पीड़ित लोगों के प्रति उदारता दिखाने का एक लंबा इतिहास रहा है। इसे एक समुदाय के खिलाफ नहीं होना चाहिए।
नये कानून के मुताबिक हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग जो पाकिस्तान , बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक आए हैं। इन देशों में उन्हें धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा था, उनके साथ गैरकानूनी घुसपैठियों की तरह व्यवहार न करते हुए उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी। इस कानून से मुस्लिमों को बाहर रखने और इसे कथित तौर पर NRC और NPR लागू किए जाने से पूरे भारत में जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं।
‘मुझे समझ नहीं आता अमीर और पढ़े-लिखे, गरीबों के प्रति उदार क्यों नहीं?’
अपने साथी अर्थशास्त्रियों एस्थर डुफ्लो और माइकल क्रेमर के साथ नोबेल पुरस्कार पाने वाले अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने मुस्लिमों को बाहर रखने की बात पर सवाल उठाते हुए पूछा, वे ज्यादातर गरीब हैं और बुरी तरह शिक्षित लोग हैं। वे जनसंख्या में बिल्कुल अल्पसंख्यक हैं। मैं यह नहीं देख पाता कि हमें उनके प्रति उदार क्यों नहीं होना चाहिए? मैं इन सिद्धांतों को नहीं समझ पाता कि क्यों अमीर और पढ़े-लिखे लोगों की बहुसंख्या को उनके प्रति उदार नहीं होना चाहिए?
बनर्जी ने कहा कि अल्पसंख्यक कोई डर नहीं पैदा करते। मैं सोचता हूं कि बाहरियों के प्रति उदार रहने का हमारा लंबा इतिहास रहा है। यहूदी प्रवासी जो कि मध्य-पूर्व से आए थे, उनका त्रावणकोर और कोचीन के राजा ने स्वागत किया था। अमेरिका की तरह, भारत में अल्पसंख्यक कहीं से भी हावी होने की स्थिति में नहीं है। इसलिए यह सोचना आधारहीन है कि मुस्लिम भारत को कब्जे में ले लेंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू परंपरा ‘सबका स्वागत करने’ की है। जब सरकार के पक्ष के बारे में बताया गया कि नया कानून गैर-मुस्लिम लोगों को नागरिकता देने के लिए है और यह भारतीय मुस्लिमों की नागरिकता लेने के लिए नहीं है। तो बनर्जी ने भारत के पड़ोसी देशों में अहमदिया, शिया और रोहिंग्या समुदायों पर हो रहे अत्याचारों की ओर इशारा किया।