काबुल। तालिबान ने नाटो यानी नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन से कहा है कि अफगानिस्तान में हमले करने का वक्त अब खत्म हो गया है। इस देश के साथ कूटनीति के माध्यम से जुड़ा जाना चाहिए। तालिबान के इस बयान को नाटो को चेतावनी देने वाला भी बताया जा रहा है। क्योंकि करीब एक हफ्ते पहले नाटो प्रमुख जीन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा था कि सहयोगी देशों को अफगानिस्तान में गंभीर होती स्थिति को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है। उन्होंने ये भी कहा था कि ‘अफगानिस्तान में पुर्नगठित हुए वैश्विक आतंकवादी समूहों पर हमला करने और उनके किसी भी प्रयास की निगरानी करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसका लक्ष्य हमें निशाना बनाना है।
कूटनीति के जरिए निपटाए जाएं मुद्दे
जानकारी के मुताबिक, तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा है कि, नाटो महासचिव कुछ समय के लिए अपने दर्द को महसूस कर सकते हैं और अपनी विफलताओं के बारे में बात कर सकते हैं, लेकिन उन्हें ये पता होना चाहिए कि हमले करने का वक्त अब समाप्त हो गया है। 20 साल पहले ही यह साबित हो गया था कि ऐसे एक्शन काम नहीं आते और इन्हें कूटनीति के जरिए निपटाया जाना चाहिए। तलिबान के अधिकारी ने कहा कि अमेरिका ने जिस संगठन (तालिबान) को आतंकी संगठनों की सूची में शामिल किया हुआ है, वही आज अफगानिस्तान पर शासन कर रहा है।
हम एक स्वतंत्र देश, हस्तक्षेप की इजाजत नहीं
जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि विश्व शक्तियों के बीच छिड़े युद्धों के केंद्र के रूप में देश का इस्तेमाल कभी नहीं होने दिया जाएगा। तालिबानी प्रवक्ता ने अफगानिस्तान के आंतरिक मामले में दूसरे देशों की दखल का विरोध किया और कहा कि ‘इसे कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा, मैं ये 100 फीसदी कह देना चाहता हूं कि पाकिस्तान सहित किसी भी देश को हस्तक्षेप करने नहीं दिया जाएगा। हम एक स्वतंत्र देश हैं। हम इस तरह के हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करेंगे। पाकिस्तान एक अलग देश है। हम उनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते और उन्हें भी हमारे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
उज्बेकिस्तान समेत दूसरे क्षेत्रीय देशों से हो रही बात
अफगानिस्तान की खराब आर्थिक स्थिति को लेकर जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि व्यापार समर्थन को लेकर उज्बेकिस्तान सहित दूसरे क्षेत्रीय देशों से बात हो रही है। बीते हफ्ते ईरान के साथ ईंधन और खाद्य निर्यात के साथ-साथ रेलवे और सीमा सुरक्षा सहित अन्य मुद्दों पर एक समझौता हुआ है। गौरतलब है कि तालिबान ने अफगानिस्तान पर बल प्रयोग करते हुए 15 अगस्त को कब्जा कर लिया था। ये वही समय था जब अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी देशों की सेना अफगानिस्तान से वापसी कर रही थी। इसके बाद कई आतंकी हमले हुए और देश में उथल-पुथल मच गई, जिसके कारण अफगानिस्तान 2001 के उसी पुराने दौर में आकर खड़ा हो गया है, जब तालिबान को अमेरिका ने सत्ता से बेदखल कर दिया था।