सियाराम पांडेय ‘शांत’
जम्मू एयर फोर्स सेंटर के तकनीकी क्षेत्र में रात के वक्त पांच मिनट के अंतराल पर दो ड्रोन हमले (Drone Attack), उससे एक इमारत की छत का क्षतिग्रस्त होना और दो जवानों का घायल होना सामान्य घटना नहीं है, यह शत्रु देश, आतंकवादी संगठनों और अलगाववादी ताकतों की ओर से भारत को प्रकारांतर से दी गई युद्धक चुनौती है। गनीमत है कि इसमें कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ लेकिन यह घटना हमें और अधिक चौकस और सचेत रहने की ओर इशारा तो करती ही है। इस घटना ने हमारी सुरक्षा तैयारियों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। पहली बात तो यह है कि जब दिल्ली में ड्रोन हमलों के खतरे से निपटने की प्रणाली है तो जम्मू-कश्मीर जैसे आतंकवाद के लिहाज से बेहद संवेदनशील राज्य में ड्रोन से निपटने की तैयारियों क्यों नहीं की गई है।
इस घटना के बाद कालूचक मिलिट्री स्टेशन के करीब दो ड्रोन का रात 10 बजे और तड़के 3 बजे देखा जाना बेहद चिंताजनक है। ड्रोन दिखने के तुरंत बाद भारतीय सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया। क्षेत्र में सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। इन ड्रोन के स्रोत तलाशे जा रहे हैं। संभव है कि एयरफोर्स स्टेशन के बाद मिलिट्री स्टेशन पर हमले की साजिश के तहत उन्हें भेजा गया हो। आतंकवादी जिस तरह जम्मू-कश्मीर में मारे जा रहे हैं, उससे पाकिस्तान अंदर तक विचलित है। सच तो यह है कि यह घटना सेना और पुलिस की सबसे बड़ी चूक है। माना जा रहा है कि हवाई मार्ग से एयरपोर्ट से मकवाल बॉर्डर की दूरी करीब पांच किलोमीटर है। ऐसे में इस ड्रोन को सीमा पार से हैंडल किए जाने का शक जाहिर किया जा रहा है। हालांकि इसको लेकर अभीतक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। एनआईए की टीम और एनएसजी कमांडो भी अपने स्तर पर मामले को देख-समझ रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि एयरफोर्स स्टेशन पर हमला करने में इस्तेमाल ड्रोन शहर के बेलीचराना क्षेत्र से ऑपरेट किए गए। इस इलाके में कई जगहों पर दबिश देकर पूछताछ की जा रही है, क्योंकि ड्रोन के बॉर्डर से आने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही। एक तरफ से बॉर्डर 10 और दूसरी तरफ से 16 किलोमीटर दूर है। लिहाजा ड्रोन का इस्तेमाल एयरफोर्स के आसपास से किया गया होगा? एयरफोर्स के पास सबसे संदिग्ध क्षेत्र बेलीचराना ही है, जिसके साथ तवी नदी भी लगती है। जम्मू में वायुसेना के एयरबेस पर ड्रोन से हुए बम हमले को भविष्य के लिए एक बड़े खतरे के रूप में आंकते हुए वायुसेना समेत तमाम सैन्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा का नए सिरे से आडिट कराया जाएगा।
भारत में वायुसेना स्टेशन पर पहली बार हुए ड्रोन हमले की नई चुनौती को देखते हुए सैन्य प्रतिष्ठानों की फूलप्रूफ सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद अहम हो गया है। ड्रोन हमला सैन्य सुरक्षा के लिए नए तरह का खतरा है। एयरबेस ही नहीं दूसरे तमाम सैन्य प्रतिष्ठानों के लिए कम ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन को इंटरसेप्ट करना आसान नहीं है। इसके लिए सैन्य प्रतिष्ठानों के पास तकनीक और उपकरण दोनों की कमी है। सैन्य प्रतिष्ठानों को इस तरह के हमलों से बचाने के लिए यथाशीघ्र उपकरणों व तकनीक से लैस करना जरूरी है। पाकिस्तानी एजेंसियां आतंकी संगठनों को ड्रोन समेत दूसरे आधुनिक उपकरण व तकनीक मुहैया करा रही हैं।
सऊदी अरब के सबसे बड़े तेल डिपो पर कुछ अरसा पहले ड्रोन से हुए आतंकी हमले का उदाहरण बहुत पुराना नहीं है। अमेरिकी एजेंसियां भी इस ड्रोन मिसाइल को इंटरसेप्ट नहीं कर पाई थीं। जम्मू एयरपोर्ट के जिस टेक्निकल एरिया में ड्रोन से बम हमला हुआ वह वायुसेना के हेलीकॉप्टर हैंगर के करीब था। वायुसेना के ध्रुव हेलीकाप्टर इस हैंगर में पार्क हैं। राहत की बात यही है कि इस हमले में कोई भारी नुकसान नहीं हुआ। जम्मू की घटना के बाद वायुसेना ने श्रीनगर, अवंतीपुरा, अंबाला और पठानकोट और अवंतीपुरा जैसे सीमावर्ती एयरबेस की सुरक्षा को अलर्ट कर दिया है।
ड्रोन हमला कहीं दूर बैठकर किया जा सकता है। बहुत समय से कहा भी जा रहा है कि भावी समय ड्रोन युद्ध का है जिसमें युद्ध लड़ने के लिए सैनिकों की नहीं, तकनीकी की आवश्यकता होगी। चीन तो रोबोट सैनिक तैयार कर रहा है। अब भारत को भी खुद को उसी हिसाब से तैयार करना होगा। आतंकी संगठन ड्रोन का प्रयोग कर सकते हैं और आईएसआईएस ने मोसुल में ड्रोन हमलों के साथ यह बात साबित भी कर दी थी। भारत के अलावा अमेरिका, इजरायल, चीन, ईरान, इटली, पाकिस्तान, तुर्की और पोलैंड ने ही साल 2019 तक ऑपरेशनल यूएवी यानी अनमैन्ड एरियल व्हीकल तैयार कर लिए थे। ड्रोन अटैक में किसी भी यूएवी की मदद से बम को ड्रॉप करना, मिसाइल फायर करना, टारगेट को क्रैश करना और कुछ और कामों को अंजाम दिया जा सकता है। ड्रोन अटैक में यूएवी को किसी और जगह से कंट्रोल किया जाता है। दुनिया के कई देशों में ड्रोन हमले के तहत टारगेटेड किलिंग को अंजाम भी दिया जा चुका है। अब आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस ड्रोन को कमांड करने की भी जरूरत नहीं है।
ड्रोन अटैक की जानकारी दुनिया को सबसे पहले अमेरिका ने दी थी। अमेरिका ने अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान, सीरिया, इराक, सोमालिया और यमन में हवा से जमीन तक हमला करने में सक्षम मिसाइलों को फायर करने के लिए ड्रोन का प्रयोग किया, लेकिन तुर्की और अजरबैजान ने जमकर ड्रोन युद्ध को अपनाया। वर्ष 2020 में तुर्की के बने यूएवी को विस्फोटकों से लादा गया था।इस ड्रोन ने लीबिया में हफ्तार की सेनाओं को निशाना बनाया था। जनवरी 2012 से फरवरी 2013 तक अमेरिका पर ड्रोन का प्रयोग करके मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप भी लगे थे। संयुक्त राष्ट्रसंघ के मुताबिक अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशंस में 200 लोगों की जान गई है जबकि निशाना बस 35 लोग ही थे। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में अमेरिकी सेनाओं ने जमकर ड्रोन हमलों को अंजाम दिया। 2019 में सऊदी अरब की दो बड़ी तेल फैक्ट्रियों पर ड्रोन हमले के बाद ही भारत सरकार ने दुश्मन ड्रोन से निपटने के लिए गाइडलाइंस पर काम करना शुरू कर दिया था। नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो के महानिदेशक की अध्यक्षता वाली नागर विमानन महानिदेशालय, इंटेलीजेंस ब्यूरो , रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन , भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड की समिति ने ये गाइडलाइंस बनाई थीं।
सवाल यह है कि जब भारत को पता है कि ऐसा हो सकता है फिर भी उसके सैन्य ठिकाने इतने असुरक्षित क्यों हैं? आपदाएं न तो बोल -बताकर आती हैं और न ही रोज आती हैं। इसलिए भी जरूरी है कि सतर्क रहा जाए और अपने सभी सैन्य ठिकानों, सुरक्षा संस्थानों की सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए जाएं। पाकिस्तान पर जम्मू-कश्मीर में ड्रोन हमले का शक इसलिए भी जाता है क्योंकि वह ड्रोन का इस्तेमाल पहले भी करता रहा है। उसने पंजाब में अंतरराष्ट्रीय सीमा के जरिए ऐसे कई ड्रोन भेजे थे जिनमें से ज्यादातर समय रहते पकड़ लिए गए थे और जब भारत में ड्रोन का इस्तेमाल दवा पहुंचाने, उर्वरक पहुंचाने और वाणिज्यिक सामानों की आपूर्ति में हो रहा है।