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उत्तराखंड में सीएम हाउस का मिथक तोड़ पाएंगे त्रिवेंद्र सिंह रावत?

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देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति में एक बड़ा मिथक जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि मुख्यमंत्री आवास में अपशकुन है। यहां जो भी मुख्यमंत्री रहता है वो अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है। उत्तराखंड की राजनीति में इस समय इसी तरह की चर्चाएं चल रही हैं जिन्होंने सबका ध्यान एक बार फिर मुख्यमंत्री आवास की तरफ खींचा है।

उत्तराखंड में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन की अटकलों ने जोर पकड़ा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत  (trivendra singh rawat)के अचानक दिल्ली दौरे ने इन हवाओं को और बल दिया है। अगर ये बात सच होती है तो सबसे पहले जिस बात पर सबका ध्यान जाएगा, वो है गढ़ी कैंट में स्थित मुख्यमंत्री आवास। क्योंकि उत्तराखंड में सत्ता परिवर्तन का एक बड़ा कारण मुख्यमंत्री आवास को माना जाता है। मुख्यमंत्री आवास से सीएम के कार्यकाल का एक मिथक जुड़ा हुआ है।

देहरादून की वादियों में करोड़ों रुपए की लागत से पहाड़ी शैली में बना उत्तराखंड मुख्यमंत्री आवास अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। इस बंगले से जुड़ा एक मिथक यह भी है कि इस बंगले में जो भी मुख्यमंत्री रहा है उसने कभी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। यानी उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद हरीश रावत ने इस बंगले से दूरी बना ली थी। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक दिन भी बगले में पैर नहीं रखा। हरीश रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपना ठिकाना बीजापुर गेस्ट हाउस में बनवाया था। हालांकि वो भी दोबारा सत्ता का सुख नहीं भोग पाए थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां उन्हें करारी हार का सामना पड़ा तो वहीं बीजेपी को सत्ता की चाभी मिल गई थी।

अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए थे बीसी खंडूरी

गढ़ी कैंट में राजभवन के बराबर में बने मुख्यमंत्री आवास का निर्माणकार्य तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की सरकार में हुआ था। हालांकि जब तक मुख्यमंत्री आवास का निर्माण कार्य पूरा होता उसके पहले ही उनका पांच साल का कार्यकाल पूरा हो गया। इसके बाद 2007 में बीजेपी की सरकार बनी और प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री के तौर पर बीसी खंडूरी को मिली। अधूरे बंगले को खंडूरी ने दिलो जान से तैयार कराया। मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंने ही इस बंगले का उद्धाटन किया लेकिन वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. ढाई साल बाद ही कुर्सी उनके नीचे से खिसक गई।

छह महीने पहले ही चली गई कुर्सी

बीजेपी हाई कमान ने उत्तराखंड की सत्ता डॉ. रमेश पोखियाल निशंक को सौंपी। मुख्यमंत्री बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री निशंक ने भी अपनी सत्ता इस बंगले से चलाई लेकिन 2012 के चुनाव से ठीक छह महीने पहले ही हरिद्वार कुंभ घोटाले के आरोप में घिरे निशंक को सत्ता छोड़नी पड़ी। बीजेपी हाईकमान ने उनसे सत्ता की चाभी ले ली और प्रदेश की कमान एक बार फिर बीसी खंडूरी के हाथों में चली गई। यानी निशंक भी इस बंगले में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।

बीसी खंडूरी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2012 का चुनाव लड़ा. इस चुनाव में बीसी खंडूरी कोटद्वार से हार गए। काफी उठा पटक के बाद आखिरकार कांग्रेस ने सरकार बना ली। कांग्रेस ने तत्कालीन टिहरी से लोकसभा सांसद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया। मुख्यमंत्री पद पर अपनी ताजपोशी करवाने के बाद विजय बहुगुणा इसी आवास में रहने लगे लेकिन दो साल बाद सत्ता ने फिर से पलटी मारी और विजय बहुगुणा भी सत्ता से बेआबरू होकर हटाये गए। वो इस बंगले में रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और सत्ता हरीश रावत के हाथों में आ गई। हालांकि हरदा कभी इस बगले में नहीं रहे, लेकिन 2017 में उनके नेतृत्व में कांग्रेस भी हार गई थी।

क्या टूटेगा मिथक?

2017 में बीजेपी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री के पद पर त्रिवेंद्र सिंह रावत की ताजपोशी हुई। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पूरे विधि-विधान के साथ परिवार सहित इस बंगले में कदम रखा था। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए चार साल का कार्यकाल पूर भी कर लिया है। उम्मीद की जा रहा है कि एनडी तिवारी के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेश के दूसरे मुख्यमंत्री होंगे जो अपना कार्यकाल पूरा करेंगे लेकिन अभी सत्ता परिवर्तन की अटकलों ने जिस तरह से जोर पकड़ा है। उससे एक बार फिर मुख्यमंत्री आवास से जुड़े मिथक पर सोचने को मजबूर कर दिया है।

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