नई दिल्ली। कहते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो कभी नहीं मरते। उनको मौत लगाकर उनके शरीर को तो खत्म करती मगर उनका नाम हमेशा अमर रहता है। ऐसी ही भारत की पहली महिला अंतरिक्ष वैज्ञानिक कल्पना चावला का नाम भी उन्हीं लोगों में गिना जाता है।
तभी तो इस संसार को अलविदा कहने के 14 वर्षों बाद भी लोग उन्हें आज भी लोग याद करते हैं। भारत की हर मां अपनी बेटी को आज भी कल्पना चावला जैसा बनने का आर्शीवाद देती है। मगर कल्पना चावला बनना इतना आसान भी नहीं है। बता दें कि मेहनत और लगन के साथ उन्होंने जो मुकाम हासिल किया था। वहां तक पहुंचने के लिए हर महिला को पहले कल्पना के बारे में जानना बहुत जरूरी है। आइए हम कल्पना चावला की पुण्य तिथि के मौके पर हम उनसे जुड़ी कुछ बातों के बारे में विस्तार से बतातें हैं।
जानें कैसे बीता कल्पना का बचपन?
बचपन में कल्पना हरियाणा के करनाल जिले में पैदा हुई थीं। चार भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। इसलिए उन्हें सभी का लाड़ प्यार मिलता था। इस वजह से कल्पना पढ़ाई में बहुत अच्छी नहीं थीं। क्लास में उनकी गिनती सामान्य छात्रा में होती थी। मगर क्लास आठ में आते आते वह अपने भविष्य के बारे में सोचने लगी थीं। कल्पना को उड़ते जहाज बहुत आकर्षित करते थे। इसके बारे में पहले उन्होंने पढ़ा कि किस तरह वह भी जहाज उड़ा सकती हैं फिर उन्होंने तय किया कि वह इंजीनियर बनेंगी। लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर या टीचर बनें।
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कल्पना चावला के पिता चाहते थे कि वह डॉक्टर या टीचर बनें
कल्पना चावला को पता था कि पिता को केवल मां ही मना सकती हैं। इसलिए अपने दिल की बात कल्पना ने मां से कही। पिता ने भी कल्पना के सपनों पर अपनी सहमती की मुहर लगा दी। स्कूली पढ़ाई खत्म करने के बाद कल्पना ने पंजाब इंजीनीयरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद कल्पना अमेरिका चली गईं। वहां पहुंचने के बाद कल्पना को अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने का विचार आया और उन्होंने टैक्सेस से आगे की पढ़ाई की।
कल्पना में आलस्य नाम की नहीं थी चीज
कल्पना में आलस्य नाम की चीज नहीं थी। वह भले ही पढ़ाई में बहुत अच्छी नहीं थी मगर उन्हें खेल में बड़ी रुचि थी। बैडमिंटन से तो उन्हें खास लगाव था। इसके साथ ही वह दूसरे खेलों को भी बखूबी खेलना जानती थीं। कल्पना हमेशा नई चीजें सीखने के लिए तैयार रहती थीं। यही वजह है कि उन्हें डांसिंग, सिंगिंग और पोयट्री लिखना भी आता था। अलसी न होने के साथ ही साथ कल्पना डरपोक भी नहीं थीं। अपनी इस खूबी की वजह से ही उन्हें हवाईजहाज़ों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंस के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था। कल्पना अंतरिक्ष वैज्ञानिक होने से पहले नासा में वैज्ञानिक थी। नासा में उन्हें एक विशेष रिसर्च में वाइस प्रेसिडेंट बनाया गया था। इसके बाद उन्हें एस्ट्रोनॉट्स की कोर टीम में शामिल किया गया। वर्ष 1998 में कल्पना ने स्पेस के लिए जब अपनी पहली उड़ान भरी तो उन्हें भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री होने का खिताब दिया गया। वैसे वह भारत की दूसरी एस्ट्रोनॉट्स थी जो स्पेस में गई थीं। उनसे पहले वर्ष 1984 में राकेश शर्मा स्पेस जा चुके थे।
कल्पना ने वर्ष 1983 में की थी शादी
कल्पना ने वर्ष 1983 में शादी की थी। मगर कल्पना बेहद प्रैक्टिकल थीं। उन्हें पता था कि अन्य महिलाओं कि तरह वह शादी के बाद कि जिम्मेदारियां नहीं निभा सकेंगी इसलिए उन्होंने शादी के लिए एक ऐसे व्यक्ति को चुना, जो उनके प्रोफेशन को अच्छे से समझ सके। उन्होंने फ्लाइंग ट्रेनर एवं एरोनॉटिक ऑथर जीन पियरे हैरीसन से शादी की थी। जीन कल्पना के काम से अच्छी तरह वाकिफ थे इसलिए उन्होंने कल्पना को आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका। वर्ष 2000 में कल्पना अपनी दूसरी उड़ान के लिए निकली और यही उनकी आखिरी यात्रा भी साबित हुई। 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल पृथ्वी की कक्षा मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। इसके साथ ही यान में सवार सातों यात्री भी दुनिया को अलविदा कह गए। कल्पना भी इसी यान में थीं। हादसे के बाद उनके शरीर के अवशेष टेक्सास शहर में मिले थे।
कल्पना की उपलब्धियों से महिलाएं बहुत सारी ले सकती हैं सीख
कल्पना की उपलब्धियों से महिलाएं बहुत सारी सीख ले सकती हैं। सबसे पहले तो महिलाओं को खुद पर विश्वास करना सीखना चाहिए। कल्पना मजबूत विचारों वाली महिला थीं। हर महिला को कल्पना की इस खूबी को अपनाना चाहिए और कभी खुद को कमजोर नहीं समझना चाहिए।