नई दिल्ली। भारत के मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर भी सूचना के अधिकार कानून (RTI) के दायरे में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसले में कहा कि मुख्य न्यायाधीश (CJI) का दफ्तर सार्वजनिक कार्यालय है, इसलिए यह RTI के दायरे में आएगा।
Supreme Court holds that office of Chief Justice of India is public authority under the purview of the transparency law, Right to Information Act (RTI). pic.twitter.com/97pyExixuQ
— ANI (@ANI) November 13, 2019
सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सीजीआई दफ्तर एक सार्वजनिक कार्यालय है। इसलिए यह आरटीआई के दायरे में आएगा। पीठ ने कहा कि सीजीआई दफ्तर सार्वजनिक कार्यालय है।
पीठ में सीजेआई समेत जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना उस याचिका पर अपना फैसला सुनाया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के महासचिव ने दिल्ली हाईकोर्ट के जनवरी 2010 में आए फैसले को चुनौती दी थी।
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दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सीजेआई का दफ्तर एक सार्वजनिक प्राधिकरण है और इसे सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत लाया जाना चाहिए। पीठ ने इस साल अप्रैल में इस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
रंजन गोगोई ने पहले यह कहा था कि पारदर्शिता के नाम पर एक संस्था को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। नवंबर 2007 में आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल ने आरटीआई याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से जजों की संपत्ति के बारे में जानकारी मांगी थी जो उन्हें देने से इनकार कर दिया गया।
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अग्रवाल इसके बाद सीआईसी के पास पहुंचे और सीआईसी ने सुप्रीम कोर्ट से इस आधार पर सूचना देने को कहा कि सीजेआई का दफ्तर भी कानून के अंतर्गत आता है। इसके बाद जनवरी 2009 में सीआईसी के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी गई हालांकि वहां भी सीजेआई के आदेश को कायम रखा गया।