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आत्ममंथन का अवसर भी है भाजपा का स्थापना दिवस

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

किसी संगठन का विस्तार और उसकी उपलब्धियां बताती है कि उसके रणनीतिकारों ने कितनी मेहनत की है। कितना त्याग और कितनी तपस्या की है। भारतीय जनता पार्टी भी इसका अपवाद नहीं है। 6 अप्रैल उसका स्थापना दिवस ही नहीं है बल्कि उसके लिए आत्ममंथन का अवसर भी है। इसी दिन वर्ष 1980 को भाजपा की स्थापना  हुई थी। 2 लोकसभा सीटों से 303  लोक सभा सीटों पर विजय का राजनीतिक सफर कम नहीं होता। आज  भाजपा न केवल केंद्र में सबसे बड़ी राजनीतिक  पार्टी है बल्कि देश के 29 में से 16 राज्यों में उसकी सरकार है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने देश—दुनिया में अपने प्रभुत्व का परचम लहराया है। दुनिया के विकसित देश अगर भारत की बात मानने को विवश हो रहे हैं तो इसके पीछे योग्य रणनीति और सटीक कार्यशैली ही प्रमुख है। उसके सदस्यों की संख्या भारत ही नहीं, दुनिया भर के किसी भी राजनीतिक संगठन से कहीं अधिक है।

1951 में पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी। 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी का  निर्माण  हुआ जिसमें जनसंघ समेत अन्य दलों का विलय हो गया। 1977 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की चुनावी हार हुई और तीन साल तक जनता पार्टी की सरकार चली। 1980 में जनता पार्टी विघटित हो गई और जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुए भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया।  हालांकि शुरुआती दौर में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

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1984 के आम चुनाव में भाजपा को लोकसभा की केवल दो सीटें ही मिलीं। यह संख्या ज्यादा भी हो सकती थी लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी  को सहानुभूति का लाभ मिला। इसके बाद भाजपा ने विश्व हिंदू परिषद द्वारा शुरू किए गए राम जन्मभूमि आंदोलन को अपना समर्थन दिया। यह और बात है कि इसके लिए उसे परेशानियां भी खूब झेली पड़ी लेकिन भगवान राम की कृपा से वह जो आगे बढ़ी तो उसने पलटकर नहीं देखा। वर्ष 2004 से 2014 तक के कालखंड को छोड़कर। यह और बात है कि इस बीच वह केंद्र में ही सत्ता से बाहर रही। अन्य राज्यों में उसकी जड़ें अपेक्षाकृत मजबूत ही होती रहीं। 1996 में वह भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा को  सरकार बनाने के लिए  आमंत्रण मिला भी और सरकार भी बनी लेकिन बहुमत के अभाव में वह 13 दिन ही चल पाई।

1998 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनाव में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया।  अगर यह  कहें कि अपना कार्यकाल पूर्ण करने वाली वह पहली गैर कांग्रेसी सरकार  थी तो कदाचित गलत नहीं होगा।

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2004 के आम चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा और अगले 10 वर्ष के लिए वह संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका  में आ गई।  2014  के  लोकसभा चुनाव में राजग को गुजरात के  लगातार तीन बार के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और  केंद्र में भाजपा की सरकार बनी।

जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा ख़त्म कर मोदी सरकार ने अगर पार्टी का एक एजेंडा पूरा कर दिया है तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भी आरंभ हो गया है। राम वन गमन मार्ग बनाया जा रहा था तो अयोध्या में विशेष संग्रहालय का भी निर्माण हो रहा है। इतना ही नहीं, नव्य अयोध्या भी विकसित की जा रही है। सरकार की कोशिश समान नागरिक संहिता बनाने की है लेकिन राज्यसभा में उसकी थोड़ी कम उपस्थिति उसे चिलित भी करती है। एनआसी जैसे मुद्दों पर विपक्ष का हंगामा किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में सरकार दध की जली बिल्ली की तरह छांछ भी फूंक कर पीना चाहती है। यह सच है कि अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने 1998-2004  के बीच किसी भी विवादास्पद मुद्दे को नहीं छुआ और इसके स्थान पर वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही लेकिन नरेंद्र मोदी की केंद्र में सरकार बनने के बाद से देश भर में भाजपा मजबूत हुई है।

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सबका साथ—सबका विकास और सबका विश्वास का नारा देकर नरेंद्र मोदी ने देश के जनता—जनार्दन के दिल में अपनी जगह बनाने की कोशिश की है। 1980 से लेकर 2021 तक के 41 साल के कालखंड में भाजपा ने अगर बहुत कुछ पाया है तो बहुत कुछ खोया भी है। असम, केरल, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में वह जिस तरह चुनावी जोर आजमाइश कर रही है , उससे तो यही लगता है कि डबल इंजन की सरकार बनाने का एक भी मौका अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती। पहले अध्यक्ष  अटल बिहारी बाजपेयी से लेकर जेपी नड्डा तक की अध्यक्षता में भाजपा निरंतर प्रगति पथ पर गतिशील है। यही वजह है कि आज कांग्रेस समेत सभी प्रमुख विपक्षी दल उसे जड़—मूल से उखाड़ फेंकना चाहते हैं लेकिन उसकी जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं। इतनी गहरे तक धंसी हैं कि विपक्ष को मुंह की ही खानी पड़ रही है।

सितम्बर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा आरंभ होने और बिहार की तत्कालीन लालू सरकार द्वारा समस्तीपुर में हुई उनकी गिरफ्तारी ने भाजपा को और मजबूती दे दी थी। उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार में अयोध्या में कारसेवकों पर हुई गोली बारी से भी भाजपा को बल मिला था और आज उसका स्वर्णिम काल है।  जब देश के 16 राज्यों और केंद्र में उसकी अपनी या समर्थन की सरकार है।  27 फरवरी 2002 कारसेवकों को लेकर अयोध्या से आ रही साबरमती एक्सप्रेस को गोधरा कस्बे के बाहर  अल्पंख्यको द्वारा आग लगा दी गयी। इस हादसे में  59 लोग मारे गये।  इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात में हिंसा भड़क गई।  इसमें मरने वालों की संख्या 2हजार तक पहुंच गई जबकि  तकरीबन डेढ़ लाख लोग विस्थापित हो गए। यह और बात है कि इन सबके बावजूद नरेंद्र मोदी ने देश को जोड़े रखने का अपना अभियान नहीं छोड़ा। प्रधानमंत्री बनने के बाद से उन्होंने देश के विकास को लेकर दिन—रात प्रयास किया।

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एक दिन का भी अवकाश नहीं लिया। लोग जागरूक हों, इसके लिए वे सतत सचेष्ट रहते हैं। भाजपा अगर एकजुटता के साथ आगे बढ़ रही है तो उसके मूल में नरेंद्र मोदी की प्रेरणा ही है। भाजपा को सोचना होगा कि वह और बेहतर क्या कर सकती है। जन—जन तक , घर—घर तक कैसे पहुंच सकती है। जनहित के पार्टी के संकल्पों को कैसे पूरा कर सकती है। भाजपा का निश्चित रूप से यह स्वर्णकाल है लेकिन विश्राम काल कतई नहीं है। इसलिए भाजपा के हर छासेटे— बड़े कार्यकर्ता को अपनी जिम्मेदारियों का शत—प्रतिशत पालन करना होगा। सरकार की जनहितकारी योजनाओं का निष्पक्षता से अनुपालन हो, इस दिशा में विचार करना होगा। अपने—अपने क्ष़े में चल रहें विकास कार्यों में कदाचार रोकने के लिए उस पर नजर रखनी होगी। जब पूरी भाजपा एकजुटता से खड़ी होगी तभी यह देश सही मायने में सोने की चिड़िया बन सकेगा।

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